*29 जूलै दिनविशेष 2022 !*
🧩 *शुक्रवार* 🧩
💥 *आंतरराष्ट्रीय वाघ दिन*
🌍 *घडामोडी* 🌍
👉 *1997 - हरनाम घोष कोलकाता स्मृती चिन्ह पुरस्कार दिलिप पुरुषोत्तम चित्रे व मराठी साहित्यिकास प्रथमच मिळालं*
👉 *1957 - इंटरनॅशनल ॲटाॅमिक एनर्जी एजन्सी ची स्थापना झाली*
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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर*
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर)
9860214288, 9423640394
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🌍 *जन्म*
👉 *1981 - स्पॅनिश f 1 रेस कार ड्रायव्हर फर्नाडो अलोन्सो यांचा जन्म*
👉 *1953 - भजन गायक अनुपम जलोटा यांचा जन्म*
🌍 *मृत्यू*
👉 *2006 - मराठी संत साहित्यातील विव्दान डाॅ निर्मलकुमार फडकुले यांचे निधन*
👉 *2002 - गायक व संगीतकार सुधीर फडके ऊर्फ बाबुजी यांचे निधन*
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
*⚜️ आझादी का अमृत महोत्सव ⚜️*
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🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
▬ ❚❂❚❂❚ ▬ संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,
चंद्रपूर 9403183828 ➿➿➿➿➿➿➿➿➿
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*भारतरत्न*
*अरुणा आसफ अली*
*जन्म - 16 जुलाई 1909*
(हरियाणा)
*मृत्यु - 29 जुलाई 1996* पूरा नाम - अरुणा आसफ़ अली
अन्य नाम - अरुणा गांगुली
पति - आसफ़ अली
कर्म भूमि - भारत
कर्म-क्षेत्र - स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक
भाषा - हिन्दी, अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि - 'लेनिन शांति पुरस्कार' (1964), 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार' (1991), 'पद्म विभूषण' (1992), ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’, 'भारत रत्न' (1997)
विशेष योगदान - 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में विशेष योगदान था।
नागरिकता - भारतीय
अन्य जानकारी - 1998 में इनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।
अरुणा आसफ़ अली का नाम भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इन्होंने भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई उल्लेखनीय कार्य किये थे। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता श्रीमती अरुणा आसफ़ अली का नाम इतिहास में दर्ज है। अरुणा आसफ़ अली ने सन 1942 ई. के ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ आंदोलन में महत्त्वपूर्ण योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता। देश को आज़ाद कराने के लिए अरुणा जी निरंतर वर्षों अंग्रेज़ों से संघर्ष करती रही थीं।
♦ *जीवन परिचय*
अरुणा जी का जन्म बंगाली परिवार में 16 जुलाई सन 1909 ई. को हरियाणा, तत्कालीन पंजाब के 'कालका' नामक स्थान में हुआ था। इनका परिवार जाति से ब्राह्मण था। इनका नाम 'अरुणा गांगुली' था। अरुणा जी ने स्कूली शिक्षा नैनीताल में प्राप्त की थी। नैनीताल में इनके पिता का होटल था। यह बहुत ही कुशाग्र बुद्धि और पढ़ाई लिखाई में बहुत चतुर थीं। बाल्यकाल से ही कक्षा में सर्वोच्च स्थान पाती थीं। बचपन में ही उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुरता की धाक जमा दी थी। लाहौर और नैनीताल से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह शिक्षिका बन गई और कोलकाता के 'गोखले मेमोरियल कॉलेज' में अध्यापन कार्य करने लगीं।
👫 *विवाह*
अरुणा जी ने 19 वर्ष की आयु में सन 1928 ई. में अपना अंतर्जातीय प्रेम विवाह दिल्ली के सुविख्यात वकील और कांग्रेस के नेता आसफ़ अली से कर लिया। आसफ़ अली अरुणा से आयु में 20 वर्ष बड़े थे। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे और मुस्लिम युवक आसफ़ अली के साथ अपनी बेटी की शादी किसी भी क़ीमत पर करने को राज़ी नहीं थे। अरुणा जी स्वतंत्र विचारों की और स्वतः निर्णय लेने वाली युवती थीं। उन्होंने माता-पिता के विरोध के बाद भी स्वेच्छा से शादी कर ली। विवाह के बाद वह पति के पास आ गईं, और पति के साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं। इस विवाह ने अरुणा के जीवन की दिशा बदल दी। वे राजनीति में रुचि लेने लगीं। वे राष्ट्रीय आन्दोलन में सम्मिलित हो गईं।
🔷 *राजनीतिक और सामाजिक जीवन*
परतंत्रता में भारत की दुर्दशा और अंग्रेज़ों के अत्याचार देखकर विवाह के उपरांत श्रीमती अरुणा आसफ़ अली स्वतंत्रता-संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। उन्होंने महात्मा गांधी और मौलाना अबुल क़लाम आज़ाद की सभाओं में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। वह इन दोनों नेताओं के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता, से राजनीति में भाग लेने लगीं, वे फिर लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ कांग्रेस 'सोशलिस्ट पार्टी' से संबद्ध हो गईं।
⛓️ *जेल यात्रा*
अरुणा जी ने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सज़ाएँ भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, डॉ. राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 ई. के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में अरुणा जी ने अंग्रेज़ों की जेल में बन्द होने के बदले भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आन्दोलन का नेतृत्व करना उचित समझा। गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरन्त बाद मुम्बई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। फिर गुप्त रूप से उन कांग्रेसजनों का पथ-प्रदर्शन किया, जो जेल से बाहर रह सके थे। मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर, पर पुलिस की पकड़ से बचकर लोगों में नव जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी सम्पत्ति जब्त करने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।
⚜️ *कांग्रेस कमेटी की निर्वाचित अध्यक्ष*
दो वर्ष के अंतराल के बाद सन् 1946 ई. में वह भूमिगत जीवन से बाहर आ गईं। भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद सन् 1947 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया।
कांग्रेस से सोशलिस्ट पार्टी में
सन 1948 ई. में श्रीमती अरुणा आसफ़ अली 'सोशलिस्ट पार्टी' में सम्मिलित हुयीं और दो साल बाद सन् 1950 ई. में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट स्पेशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर 'मज़दूर-आंदोलन' में जी जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 ई. में इस पार्टी का 'भारतीय कम्यनिस्ट पार्टी' में विलय हो गया।
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्या और ‘ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्षा बनाई गई थीं। सन् 1958 ई. में उन्होंने 'मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी' भी छोड़ दी। सन् 1964 ई. में पं. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात् वे पुनः 'कांग्रेस पार्टी' से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।
⭕ *दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर*
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली सन् 1958 ई. में 'दिल्ली नगर निगम' की प्रथम महापौर चुनी गईं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा कार्य किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्हों ने यथेष्ट सुधार किए।
🌀 *संगठनों से सम्बंध*
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली ‘इंडोसोवियत कल्चरल सोसाइटी’, ‘ऑल इंडिया पीस काउंसिल’, तथा ‘नेशनल फैडरेशन ऑफ इंडियन वूमैन’, आदि संस्थाओं के लिए उन्होंने बड़ी लगन, निष्ठा, ईमानदारी और सक्रियता से कार्य किया। दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अंग्रेज़ी दैनिक समाचार पत्र ‘पेट्रियट’ से वे जीवनपर्यंत कर्मठता से जुड़ी रहीं।
🏆 *सम्मान और पुरस्कार*
श्रीमती अरुणा आसफ़ अली को सन् 1964 में ‘लेनिन शांति पुरस्कार’, सन् 1991 में 'जवाहरलाल नेहरू अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार', 1992 में 'पद्म विभूषण' और ‘इंदिरा गांधी पुरस्कार’ (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के 'सर्वोच्च नागरिक सम्मान' भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1998 में उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर 'अरुणा आसफ़ अली मार्ग' रखा गया।
👩💼 *एक संस्मरण*
अरुणा आसफ़ अली की अपनी विशिष्ट जीवनशैली थी। उम्र के आठवें दशक में भी वह सार्वजनिक परिवहन से सफर करती थीं। कहा जाता है कि एक बार अरुणा जी दिल्ली में यात्रियों से भरी बस में सवार थीं। कोई भी जगह बैठने के लिए ख़ाली न थी। उसी बस में आधुनिक जीवन शैली की एक युवा महिला भी सवार थी। एक व्यक्ति ने युवा महिला के लिए अपनी जगह उसे दे दी और उस युवा महिला ने शिष्टाचार के कारण अपनी सीट अरुणा जी को दे दी। ऐसा करने पर वह व्यक्ति बुरा मान गया और युवा महिला से बोला - 'यह सीट तो मैंने आपके लिए ख़ाली की थी बहन।' इसके उत्तर में अरुणा आसफ़ अली तुरंत बोलीं - 'बेटा! माँ को कभी न भूलना, क्योंकि माँ का अधिकार बहन से पहले होता है।' यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत शर्मिंदा हुआ और उसने अरुणा जी से माफ़ी मांगी।
🪔 *निधन*
अरुणा आसफ़ अली वृद्धावस्था में बहुत शांत और गंभीर स्वभाव की हो गई थीं। उनकी आत्मीयता और स्नेह को कभी भुलाया नहीं जा सकता। वास्तव में वे महान् देशभक्त थीं। वयोवृद्ध स्वतंत्रता सेनानी अरुणा आसफ़ अली 87 वर्ष की आयु में दिनांक 29 जुलाई, सन् 1996 को इस संसार को छोड़कर सदैव के लिए दूर-बहुत दूर चली गईं। उनकी सुकीर्ति आज भी अमर है।
🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳
🙏🌹 *विनम्र अभिवादन* 🌹🙏
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*⚜️आझादी का अमृत महोत्सव ⚜️*
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🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
▬ ❚❂❚❂❚ ▬ संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,
चंद्रपूर 9403183828 ➿➿➿➿➿➿➿➿➿
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*पं. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर*
*भारतीय दार्शनिक, अकादमिक, लेखक, अनुवादक, उद्यमी, समाज सुधारक और परोपकारी*
*एक ऐसा समाजसुधारक जिसने अपने बेटे की शादी विधवा से की*
*जन्म : 26 सितम्बर 1820*
(विरसिंघा, बंगाल प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश इंडिया, अब - पश्चिम बंगाल, भारत)
*मृत्यु : 29 जुलाई 1891*
*(उम्र 70)*
(कलकत्ता, बंगाल प्रेसिडेंसी, ब्रिटिश इंडिया, अब - कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत)
भाषा : बंगाली
राष्ट्रीयता : भारतीय
उच्च शिक्षा : संस्कृत काॕलेज
(1828-1839)
साहित्यिक आन्दोलन : बंगाल का
पुनर्जागरण
जीवनसाथी: दिनामनी देवी
सन्तान : नारायणचंद्र बंधोपाध्याय
पिता : ठाकूरदास बंधोपाध्याय
माता : भगवती देवी
ईश्वर चंद्र विद्यासागर उन्नीसवीं शताब्दी के बंगाल के प्रसिद्ध दार्शनिक, शिक्षाविद, समाज सुधारक, लेखक, अनुवादक, मुद्रक, प्रकाशक, उद्यमी और परोपकारी व्यक्ति थे। वे बंगाल के पुनर्जागरण के स्तम्भों में से एक थे। उनके बचपन का नाम ईश्वर चन्द्र बन्दोपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध पाण्डित्य के कारण विद्यार्थी जीवन में ही संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि प्रदान की थीl
वे नारी शिक्षा के समर्थक थे। उनके प्रयास से ही कलकत्ता में एवं अन्य स्थानों में बहुत अधिक बालिका विद्यालयों की स्थापना हुई।
उस समय हिन्दु समाज में विधवाओं की स्थिति बहुत ही शोचनीय थी। उन्होनें विधवा पुनर्विवाह के लिए लोकमत तैयार किया। उन्हीं के प्रयासों से 1856 ई. में विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित हुआ। उन्होंने अपने इकलौते पुत्र का विवाह एक विधवा से ही किया। उन्होंने बाल विवाह का भी विरोध किया।
बांग्ला भाषा के गद्य को सरल एवं आधुनिक बनाने का उनका कार्य सदा याद किया जायेगा। उन्होने बांग्ला लिपि के वर्णमाला को भी सरल एवं तर्कसम्मत बनाया। बँगला पढ़ाने के लिए उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किए तथा रात्रि पाठशालाओं की भी व्यवस्था की। उन्होंने संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किया। उन्होंने संस्कृत कॉलेज में पाश्चात्य चिन्तन का अध्ययन भी आरम्भ किया।
सन २००४ में एक सर्वेक्षण में उन्हें *'अब तक का सर्वश्रेष्ठ बंगाली'* माना गया था।
🤷♂ *जीवन परिचय*
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में एक अति निर्धन दलित परिवार में हुआ था।पिता का नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी। नौ वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कालेज में विद्यारम्भ किया। शारीरिक अस्वस्थता, घोर आर्थिक कष्ट तथा गृहकार्य के बावजूद ईश्वरचंद्र ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। समृति की परीक्षा में इन्होंने जिस असाधारण पंडित का परिचय दिया उस से खुश होकर ला-कमेटी ने इन्हें विद्यासागर की उपाधि प्रदान की। लोकमत ने 'दानवीर सागर' का सम्बोधन दिया। १८४६ में संस्कृत कालेज में सहकारी सम्पादक नियुक्त हुए; किन्तु मतभेद पर त्यागपत्र दे दिया। १८५१ में उक्त कालेज में मुख्याध्यक्ष बने। १८५५ में असिस्टेंट इंस्पेक्टर, फिर पाँच सौ रुपए मासिक पर स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। १८५८ ई. में मतभेद होने पर फिर त्यागपत्र दे दिया। फिर साहित्य तथा समाजसेवा में लगे। १८८० ई. में सी.आई.ई. का सम्मान मिला।
आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा 'दयासागर' ही बनाया। विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की। समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला। शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। श्री बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था। उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की। साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। इसके अतिरिक्त शिक्षाप्रणाली में अनेक सुधार किए। समाजसुधार उनका प्रिय क्षेत्र था, जिसमें उन्हें कट्टरपंथियों का तीव्र विरोध सहना पड़ा, प्राणभय तक आ बना। वे विधवाविवाह के प्रबल समर्थक थे। शास्त्रीय प्रमाणों से उन्होंने विधवाविवाह को बैध प्रमाणित किया। पुनर्विवाहित विधवाओं के पुत्रों को १८६५ के एक्ट द्वारा वैध घोषित करवाया। अपने पुत्र का विवाह विधवा से ही किया। संस्कृत कालेज में अब तक केवल ब्राह्मण और वैद्य ही विद्योपार्जन कर सकते थे, अपने प्रयत्नों से उन्होंने समस्त हिन्दुओं के लिए विद्याध्ययन के द्वार खुलवाए।
साहित्य के क्षेत्र में बँगला गद्य के प्रथम प्रवर्त्तकों में थे। उन्होंने ५२ पुस्तकों की रचना की, जिनमें १७ संस्कृत में थी, पाँच अँग्रेजी भाषा में, शेष बँगला में। जिन पुस्तकों से उन्होंने विशेष साहित्यकीर्ति अर्जित की वे हैं, 'वैतालपंचविंशति', 'शकुंतला' तथा 'सीतावनवास'। इस प्रकार मेधावी, स्वावलंबी, स्वाभिमानी, मानवीय, अध्यवसायी, दृढ़प्रतिज्ञ, दानवीर, विद्यासागर, त्यागमूर्ति ईश्वरचंद्र ने अपने व्यक्तित्व और कार्यक्षमता से शिक्षा, साहित्य तथा समाज के क्षेत्रों में अमिट पदचिह्न छोड़े।
वे अपना जीवन एक साधारण व्यक्ति के रूप में जीते थे लेकिन लेकिन दान पुण्य के अपने काम को एक राजा की तरह करते थे। वे घर में बुने हुए साधारण सूती वस्त्र धारण करते थे जो उनकी माता जी बुनती थीं। वे झाडियों के वन में एक विशाल वट वृक्ष के सामान थे। क्षुद्र व स्वार्थी व्यवहार से तंग आकर उन्होंने अपने परिवार के साथ संबंध विच्छेद कर दिया और अपने जीवन के अंतिम १८ से २० वर्ष बिहार (अब झारखण्ड) के जामताड़ा जिले के करमाटांड़ में सन्ताल आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उनके निवास का नाम 'नन्दन कानन' (नन्दन वन) था। उनके सम्मान में अब करमाटांड़ स्टेशन का नाम 'विद्यासागर रेलवे स्टेशन' कर दिया गया है।
वे जुलाई १८९१ में दिवंगत हुए। उनकी मृत्यु के बाद रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा, “लोग आश्चर्य करते हैं कि ईश्वर ने चालीस लाख बंगालियों में कैसे एक मनुष्य को पैदा किया!” उनकी मृत्यु के बाद, उनके निवास “नन्दन कानन” को उनके बेटे ने कोलकाता के मलिक परिवार बेच दिया। इससे पहले कि “नन्दन कानन” को ध्वस्त कर दिया जाता, बिहार के बंगाली संघ ने घर-घर से एक एक रूपया अनुदान एकत्रित कर 29 मार्च 1974 को उसे खरीद लिया। बालिका विद्यालय पुनः प्रारम्भ किया गया, जिसका नामकरण विद्यासागर के नाम पर किया गया है। निःशुल्क होम्योपैथिक क्लिनिक स्थानीय जनता की सेवा कर रहा है। विद्यासागर के निवास स्थान के मूल रूप को आज भी व्यवस्थित रखा गया है। सबसे मूल्यवान सम्पत्ति लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुरानी ‘पालकी’ है जिसे स्वयं विद्यासागर प्रयोग करते थे l
🔮 *सुधारक के रूप में*
सुधारक के रूप में इन्हें राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी माना जाता है। इन्होंने विधवा पुनर्विवाह के लिए आन्दोलन किया और सन 1856 में इस आशय का अधिनियम पारित कराया। 1856-60 के मध्य इन्होने 25 विधवाओं का पुनर्विवाह कराया। इन्होने नारी शिक्षा के लिए भी प्रयास किए और इसी क्रम में 'बैठुने' स्कूल की स्थापना की तथा कुल 35 स्कूल खुलवाए।
📘 *विद्यासागर रचित ग्रन्थावली*
*शिक्षामूलक ग्रन्थ*
बर्णपरिचय (प्रथम और द्वितीय भाग ; १८५५)
ऋजुपाठ (प्रथम, द्वितीय और तृतीय भाग ; १८५१-५२)
संस्कृत ब्याकरणेर उपक्रमणिका (१८५१)
ब्याकरण कौमुदी (१८५३)
*अनुवाद ग्रन्थ*
📗 *हिन्दी से बांग्ला*
बेताल पञ्चबिंशति (१८४७ ; लल्लूलाल कृत बेताल पच्चीसी पर आधारित)
📙 *संस्कृत से बांग्ला*
शकुन्तला (दिसम्बर, १८५४ ; कालिदास के अभिज्ञानशकुन्तलम् पर आधारित)
सीतार बनबास (१८६० ; भवभूति के उत्तर रामचरित और वाल्मीकि रामायण के उत्तराकाण्ड पर आधारित)
महाभारतर उपक्रमणिका (१८६०; वेद व्यास के मूल महाभारत की उपक्रमणिका अंश पर आधारित)
बामनाख्यानम् (१८७३ ; मधुसूदन तर्कपञ्चानन रचित ११७ श्लोकों का अनुवाद)
📕 *अंग्रेजी से बांग्ला*
बाङ्गालार इतिहास (१८४८ ; मार्शम्यान कृत हिष्ट्री आफ बेङ्गाल पर आधारित)
जीवनचरित (१८४९ ; चेम्बार्छ के बायोग्राफिज पर आधारित)
नीतिबोध (प्रथम सात प्रस्ताव – १८५१; रबार्ट आरु उइलियाम चेम्बार्चर मराल क्लास बुक अवलम्बनत रचित)
बोधोदय (१८५१; चेम्बार्चर रुडिमेन्ट्स आफ नालेज पर आधारित)
कथामाला (१८५६; ईशब्स फेबलस पर आधारित)
चरिताबली (१८५७; विभिन्न अंग्रेजी ग्रन्थ और पत्र-पत्रिकाओं पर आधारित)
भ्रान्तिबिलास (१८६१; शेक्सपीयर के कमेडी आफ एरर्स' पर आधारित)
📖 *अंग्रेजी ग्रन्थ*
पोएटिकल सेलेक्शन्स
सेलेक्शन्स फ्रॉम गोल्डस्मिथ
सेलेक्शन्स फ्रॉम इंग्लिश लिटरेचर
📚 *मौलिक ग्रन्थ*
संस्कृत भाषा आरु संस्कृत साहित्य बिषयक प्रस्ताब (१८५३)
बिधबा बिबाह चलित हओया उचित किना एतद्बिषयक प्रस्ताब (१८५५)
बहुबिबाह रहित हओया उचित किना एतद्बिषयक प्रस्ताब (१८७१)
अति अल्प हइल (१८७३)
आबार अति अल्प हइल (१८७३)
ब्रजबिलास (१८८४)
रत्नपरीक्षा (१८८६)
प्रभावती सम्भाषण (सम्बत १८६३)
जीवन-चरित (१८९१ ; मरणोपरान्त प्रकाशित)
शब्दमञ्जरी (१८६४)
निष्कृति लाभेर प्रयास (१८८८)
भूगोल खगोल बर्णनम् (१८९१ ; मरणोपरान्त प्रकाशित)
📚 *सम्पादित ग्रन्थ*
अन्नदामङ्गल (१८४७)
किरातार्जुनीयम् (१८५३)
सर्वदर्शनसंग्रह (१८५३-५८)
शिशुपालबध (१८५३)
कुमारसम्भवम् (१८६२)
कादम्बरी (१८६२)
वाल्मीकि रामायण (१८६२)
रघुवंशम् (१८५३)
मेघदूतम् (१८६९)
उत्तरचरितम् (१८७२)
अभिज्ञानशकुन्तलम् (१८७१)
हर्षचरितम् (१८८३)
पद्यसंग्रह प्रथम भाग (१८८८; कृत्तिबासी रामायण से संकलित)
पद्यसंग्रह द्बितीय भाग (१८९०; रायगुणाकर भारतचन्द्र रचित अन्नदामङ्गल से संकलित)
विद्यासागर-विषयक ग्रन्थ संपादित करें
अञ्जलि बसु (सम्पादित) ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर : संसद बाङालि चरिताभिधान, साहित्य संसद, कलकाता, १९७६
अमरेन्द्रकुमार घोष ; युगपुरुष बिद्यासागर : तुलिकलम, कलकाता, १९७३
अमूल्यकृष्ण घोष ; बिद्यासागर : द्बितीय संस्करण, एम सि सरकार, कलकाता, १९१७
असितकुमार बन्द्योपाध्याय ; बांला साहित्ये बिद्यासागर : मण्डल बुक हाउस, कलकाता, १९७०
इन्द्रमित्र ; करुणासागर बिद्यासागर : आनन्द पाबलिशार्स, कलकाता, १९६६
गोपाल हालदार (सम्पादित) ; बिद्यासागर रचना सम्भार (तिन खण्डे) : पश्चिमबङ्ग निरुक्षरता दूरीकरण समिति, कलकाता, १९७४-७६
बदरुद्दीन उमर ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर ओ उनिश शतकेर बाङालि समाज : द्बितीय संस्करण, चिरायत, कलकाता, १९८२
बिनय घोष ; बिद्यासागर ओ बाङालि समाज : बेङ्गल पाबलिशार्स, कलकाता, १३५४ बङ्गाब्द
बिनय घोष ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर : अनुबादक अनिता बसु, तथ्य ओ बेतार मन्त्रक, नयादिल्लि, १९७५
ब्रजेन्द्रकुमार दे ; करुणासिन्धु बिद्यासागर : मण्डल अ्यान्ड सन्स, कलकाता, १९७०
महम्मद आबुल हाय आनिसुज्जामन ; बिद्यासागर रचना संग्रह : स्टुडेन्टस ओयेज, ढाका, १९६८
योगेन्द्रनाथ गुप्त ; बिद्यासागर : पञ्चम संस्करण, कलकाता, १९hdh४१
योगीन्द्रनाथ सरकार ; बिद्यासागर : १९०४
रजनीकान्त गुप्त ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर : १८९३
रमाकान्त चक्रबर्ती (सम्पादित) ; शतबर्ष स्मरणिका : बिद्यासागर कलेज, १८७२-१९७२ : बिद्यासागर कलेज, १९७२
रमेशचन्द्र मजुमदार ; बिद्यासागर : बांला गद्येर सूचना ओ भारतेर नारी प्रगति : जेनारेल प्रिन्टार्स अ्यान्ड पाबलिशार्स, कलकाता, १३७६ बङ्गाब्द
रबीन्द्रनाथ ठाकुर ; बिद्यासागर-चरित : बिश्बभारती ग्रन्थनबिभाग, कलकाता
राधारमण मित्र ; कलिकाताय बिद्यासागर : जिज्ञासा, कलिकाता, १९४२
रामेन्द्रसुन्दर त्रिबेदी ; चरित्र कथा : कलकाता, १९१३
शङ्करीप्रसाद बसु ; रससागर बिद्यासागर : द्बितीय संस्करण, दे’ज पाबलिशिं, कलकाता, १९९२
शङ्ख घोष ओ देबीप्रसाद चट्टोपाध्याय (सम्पादित) ; बिद्यासागर : ओरियेन्ट, कलकाता
शम्भुचन्द्र बिद्यारत्न ; बिद्यासागर चरित : कलकाता, १२९४ बङ्गाब्द
शम्भुचन्द्र बिद्यारत्न ; बिद्यासागर जीबनचरित : कलकाता
शम्भुचन्द्र बिद्यारत्न ; बिद्यासागर चरित ओ भ्रमणिरास : चिरायत, कलकाता, १९९२
शशिभूषण बिद्यालङ्कार ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर : जीबनीकोष, भारतीय ऐतिहासिक, कलकाता, १९३६
शामसुज्जामान मान ओ सेलिम होसेन ; ईश्बरचन्द्र बिद्यासागर : चरिताभिधान : बांला एकाडेमी, ढाका, १९८५
सुनीतिकुमार चट्टोपाध्याय, ब्रजेन्द्रनाथ बन्द्योपाध्याय ओ सजनीकान्त दास (सम्पादित) ; बिद्यासागर ग्रन्थाबली (तिन खण्डे) : बिद्यासागर स्मृति संरक्षण समिति, कलकाता, १३४४-४६ बङ्गाब्द
सन्तोषकुमार अधिकारी ; बिद्यासागर जीबनपञ्जि : साहित्यिका, कलकाता, १९९२
सन्तोषकुमार अधिकारी ; आधुनिक मानसिकता ओ बिद्यासागर : बिद्यासागर रिसार्च सेन्टार, कलकाता, १९८४
हरिसाधन गोस्बामी ; मार्कसीय दृष्टिते बिद्यासागर : भारती बुक स्टल, कलकाता, १९८८
(यह सूची पश्चिमबङ्ग पत्रिका के बिद्यासागर संख्या, सेप्टेम्बर-अक्टोबर १९९४, से साभार ली गयी है।)
🗽 *स्मारक*
१९७० में भारत सरकार ने विद्यासागर जी की स्मृति में एक डाक-टिकट जारी किया
विद्यासागर सेतु
विद्यासागर मेला (कोलकाता और बीरसिंह में)
विद्यासागर महाविद्यालय
विद्यासागर विश्वविद्यालय (पश्चिम मेदिनीपुर जिला में)
विद्यासागर मार्ग (मध्य कोलकाता में)
विद्यासागर क्रीडाङ्गन (विद्यासागर स्टेडियम)
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर में विद्यासागर छात्रावास
झारखण्ड के जामताड़ा जिले में विद्यासागर स्टेशन
१९७० और १९९८ में उनकी स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया.
🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳
🙏🌷 *विनम्र अभिवादन* 🌹🙏 ➖➖➖➖➖➖➖➖➖
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