14 AUGUST DINVISHESH


*🇧🇴*🇧🇴स्वातंत्र्याचा अमृत महोत्सव व स्वराज्य महोत्सव....हर घर तिरंगा*
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*14 ऑगस्ट दिनविशेष 2022 !*
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🧩 *रविवार* 🧩
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         🌍 *घडामोडी* 🌍    
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👉 *2010 - पहिल्या युवा ऑलिम्पिक स्पर्धा सिंगापूरमध्ये घेण्यात आला*         
👉 *2006 - श्रीलंकेचा वायुदलाने केलेल्या बाॅम्बहल्ल्यात चेन्वोलाई येथे 61 तामिळ मुली ठार झाल्या*
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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर* 
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर) 
9860214288, 9423640394
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🌍 *जन्म*
👉 *1957 - जाॅन प्रकाश राव जनुमला ऊर्फ जाॅनी लिव्हर विनोदी अभिनेता  यांचा जन्म*
👉 *1925 - जयवंत दळवी- साहित्यीक, नाटककार व पञकार, कथा,कांदबरीकार, नाटक, प्रवासवर्णन विनोदी वेख असे विविध प्रकार त्यात हाताळले यांचा जन्म*
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🌍 *मृत्यू*
👉 *2017 - प्रसिद्ध भारतीय कवी व साहित्यिकार चंद्रकांत देवताले यांचे निधन*
👉 *2012 - विलासराव देशमुख महाराष्ट्राचे मुख्यमंत्री आणि केंद्रीय अवजड उद्योगपती मंञी  यांचे  निधन*
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🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏


*🇧🇴 आझादी का अमृत महोत्सव 🇧🇴*
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       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
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         *केसरी सिंह बारहट*  
   (कवि तथा स्वतन्त्रता सेनानी)
    *जन्म : 21 नवम्बर, 1872*
    (देवपुरा, शाहपुरा, राजस्थान)
     *मृत्यु : 14 अगस्त, 1941*
अभिभावक : कृष्ण सिंह बारहट
संतान : प्रताप सिंह बारहट
नागरिकता : भारतीय
धर्म : हिन्दू
जेल यात्रा : 1914
विशेष : केसरी सिंह बारहट का नाम कितना प्रसिद्ध था, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर में हुए 'कांग्रेस अधिवेशन' में उन्हें जेल से छुड़ाने का प्रस्ताव पेश किया था।
अन्य जानकारी : सन 1920-21 में वर्धा में केसरी जी के नाम से 'राजस्थान केसरी' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया था, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही उनका महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ।
                      केसरी सिंह बारहट  प्रसिद्ध राजस्थानी कवि और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के साथ इतिहास, दर्शन, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने रास बिहारी बोस के साथ लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया था। केसरी सिंह बारहट ने प्रसिद्ध 'चेतावनी रा चुंग्ट्या' नामक सोरठे रचे थे, जिन्हें पढ़कर मेवाड़ के महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए थे और वे 1903 ई. में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित 'दिल्ली दरबार' में शामिल नहीं हुए थे।

👦🏻 *जन्म*
केसरी सिंह बारहट का जन्म 21 नवम्बर, 1872 ई. में देवपुरा रियासत, शाहपुरा, राजस्थान में हुआ था। इनके पिता का नाम कृष्ण सिंह बारहट था। जब केसरी सिंह मात्र एक माह के ही थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया। अतः उनका लालन-पालन उनकी दादी माँ ने किया।

📖 *शिक्षा*
केसरी जी की शिक्षा उदयपुर में हुई। उन्होंने बांग्ला, मराठी, गुजराती आदि भाषाओं के साथ इतिहास, दर्शन, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र तथा ज्योतिष आदि का अध्ययन कर प्रमाणिक विद्वत्ता हासिल कर ली थी। डिंगल-पिंगल भाषा की काव्य-सर्जना तो उनके जन्मजात चारण-संस्कारों में शामिल थी ही। बनारस से गोपीनाथ जी नाम के पंडित को बुलाकर इन्हें संस्कृत की शिक्षा भी दिलवाई गई। केसरी सिंह बारहट के स्वाध्याय के लिए उनके पिता कृष्ण सिंह का प्रसिद्ध पुस्तकालय 'कृष्ण-वाणी-विलास' भी उपलब्ध था।

🔮 *राजनीतिक गुरु*
राजनीति में वे इटली के राष्ट्रपिता मैजिनी को अपना गुरु मानते थे। मैजिनी की जीवनी वीर सावरकर ने लन्दन में पढ़ते समय मराठी में लिखकर गुप्त रूप से लोकमान्य तिलक को भेजी थी, क्योंकि उस समय मैजिनी की जीवनी पुस्तक पर ब्रिटिश साम्राज्य ने पाबन्दी लगा रखी थी। केसरी जी ने इस मराठी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद किया था।

🔱 *भाई तथा पुत्र की शहादत*
केसरी सिंह बारहट को जब सुचना मिली कि रास बिहारी बोस भारत में सशस्त्र क्रांति की योजना बना रहे हैं तो राजस्थान में क्रांति का कार्य उन्होंने स्वयं संभाला और अपने भाई जोरावर सिंह, पुत्र प्रताप सिंह और जामाता को रास बिहारी बोस के पास भेजा। केसरी जी के भाई जोरावर सिंह बारहट और पुत्र प्रताप सिंह बारहट ने रास बिहारी बोस के साथ लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय की सवारी पर बम फेंकने के कार्य में भाग लिया। जोरावर सिंह ने रास बिहारी घोष के साथ मिलकर दिल्ली के 'चांदनी चौक' में लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय पर बम फेंका, जिसमें हार्डिंग घायल हो गया तथा मृत्यु से बाल-बाल बचा। इस पर महात्मा गाँधी ने उसे बधाई का तार भेजा था। इस हमले में वायसराय तो बच गया, पर उसका ए.डी.सी. मारा गया। जोरावर सिंह पर अंग्रेज़ सरकार ने इनाम घोषित कर दिया, किंतु वे पकड़ में नहीं आये। वे एक संन्यासी की तरह फ़रार रहते हुए ग्राम-ग्राम जाकर धर्म और देशभक्ति का जनजागरण करते रहे। अंग्रेज़ों से छिपने के दौरान ही भारी निमोनिया और इलाज न करा पाने के कारण 1939 में वे कोटा में शहीद हो गए।
केसरी जी के पुत्र प्रताप सिंह बारहट 1917 में 'बनारस षड़यंत्र अभियोग' में पकड़े गए। उन्हें 5 वर्ष के लिए बरेली की केंद्रीय जेल में बंद किया गया। जेल में उन्हें भयानक यातनाएँ तथा प्रलोभन आदि दिये गए। उनसे कहा गया कि यदि वे पूरे कार्य का भेद बता दें तो उनके पिता को जेल से मुक्त कर देंगे, उनकी जागीर लौटा दी जायेगी, उसके चाचा पर से वारंट हटा लिया जायेगा, लेकिन वीर प्रताप ने अपने क्रान्तिकारी साथियों के बारे में कुछ नहीं बताया। उन्होंने मरना स्वीकार कर लिया, पर राष्ट्र के साथ गद्दारी नहीं की। जब उन्हें उनकी माँ की दशा के बारे में बताया गया तो वीर प्रताप ने कहा कि- "मेरी माँ रोती है तो रोने दो, मैं अपनी माँ को हंसाने के लिए हज़ारों माताओं को नहीं रुलाना चाहता।" अंत में अंग्रेज़ सरकार की अमानुषिक यातनाओं से 27 मई, 1918 को मात्र 22 वर्ष की आयु में प्रताप सिंह शहीद हो गए।
✍️ *'चेतावनी रा चूंग्ट्या' की रचना*
वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा आयोजित 'दिल्ली दरबार' में सभी राजाओं के साथ मेवाड़ के महाराणा का जाना राजस्थान के जागीरदार क्रान्तिकारियों को उचित नहीं लग रहा था। अतः उन्हें रोकने के लिये शेखावाटी के मलसीसर के ठाकुर भूरसिंह ने ठाकुर करण सिंह जोबनेर व राव गोपाल सिंह खरवा के साथ मिलकर महाराणा फ़तेह सिंह को दिल्ली जाने से रोकने की जिम्मेदारी क्रांतिकारी कवि केसरी सिंह बारहट को दी। केसरी सिंह ने "चेतावनी रा चुंग्ट्या" नामक सोरठे रचे, जिन्हें पढ़कर महाराणा अत्यधिक प्रभावित हुए और 'दिल्ली दरबार' में न जाने का निश्चय किया। वे दिल्ली आने के बावजूद भी समारोह में शामिल नहीं हुए।

🇮🇳 *स्वतंत्रता प्राप्ति का प्रयास*
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम दशक में ही युवा केसरी सिंह का पक्का विश्वास था कि आज़ादी सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ही संभव है। 'अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी' के महज़ ज्ञापनों भर से आज़ादी नहीं मिल सकती। 'चेतावनी रा चुंगटिया' उनकी अंग्रेज़ों के विरुद्ध भावना की स्पष्ट अभिव्यक्ति थी। 1910 में उन्होंने आमेर में 'वीर भारत सभा' की स्थापना की थी। सशस्त्र क्रांति की तैयारी के लिए प्रथम विश्वयुद्ध (1914) के प्रारम्भ में ही वे इस कार्य में जुट गए। अपने दो रिवाल्वर क्रांतिकारियों को दिए और कारतूसों का एक पार्सल बनारस के क्रांतिकारियों को भेजा व रियासती और ब्रिटिश सेना के सैनिकों से संपर्क किया। एक गोपनीय रिपोर्ट में अंग्रेज़ सरकार ने कहा कि "केसरी सिंह राजपूत रेजिमेंट से संपर्क करना चाह रहा था। उनका संपर्क बंगाल के विप्लव-दल से भी था और वे महर्षि अरविन्द से बहुत पहले 1903 में ही मिल चुके थे। महान् क्रान्तिकारी रास बिहारी बोस व शचीन्द्र नाथ सान्याल, गदर पार्टी के लाला हरदयाल और दिल्ली के क्रान्तिकारी मास्टर अमीरचंद व अवध बिहारी बोस से घनिष्ठ सम्बन्ध थे। ब्रिटिश सरकार की गुप्तचर रिपोर्टों में राजपूताना में विप्लव फैलाने के लिए केसरी सिंह बारहट व अर्जुन लाल सेठी को ख़ास जिम्मेदार माना गया था।

⛓️ *राजद्रोह का मुक़दमा*
केसरी सिंह बारहट पर ब्रिटिश सरकार ने प्यारेलाल नाम के एक साधु की हत्या और अंग्रेज़ हकूमत के ख़िलाफ़ बगावत व केन्द्रीय सरकार का तख्ता पलट व ब्रिटिश सैनिकों की स्वामि भक्ति खंडित करने के षड़यंत्र रचने का संगीन आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया गया। इसकी जाँच आर्मस्ट्रांग आई.पी.आई.जी., इंदौर को सौंपी गई, जिसने 2 मार्च, 1914 को शाहपुरा पहुँचकर वहाँ के राजा नाहर सिंह के सहयोग से केसरी सिंह को गिरफ़्तार कर लिया। इस मुक़दमे में स्पेशल जज ने केसरी सिंह को 20 वर्ष की सख्त क़ैद की सजा सुनाई और राजस्थान से दूर 'हज़ारीबाग़ केन्द्रीय जेल', बिहार भेज दिया। जेल में उन्हें पहले चक्की पीसने का कार्य सौपा गया, जहाँ वे दाल व अनाज के दानों से क, ख, ग आदि अक्षर बनाकर अनपढ़ कैदियों को अक्षर-ज्ञान देते और अनाज के दानों से ही जमीन पर भारत का नक्शा बनाकर क़ैदियों को देश के प्रान्तों का ज्ञान भी कराते।

⛓️ *रिहाई*
केसरी सिंह बारहट का नाम कितना प्रसिद्ध था, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के श्रेष्ठ नेता लोकमान्य तिलक ने अमृतसर में हुए 'कांग्रेस अधिवेशन' में केसरी सिंह को जेल से छुड़ाने का प्रस्ताव पेश किया था। जेल से छूटने के बाद अप्रैल, 1920 में केसरी सिंह ने राजपूताना के एजेंट गवर्नर-जनरल को एक बहुत सारगर्भित पत्र लिखा, जिसमें राजस्थान और भारत की रियासतों में उत्तरदायी शासन-पद्धति कायम करने के लिए सूत्र रूप से एक योजना पेश की गई थी। इसमें 'राजस्थान महासभा' के गठन का सुझाव था, जिसमें दो सदन रखने का प्रस्ताव था।

📰 *'राजस्थान केसरी' की शुरुआत*
सन 1920-1921 में सेठ जमनालाल बजाज द्वारा आमंत्रित करने पर केसरी सिंह जी सपरिवार वर्धा चले गए, जहाँ विजय सिंह पथिक जैसे जनसेवक पहले से ही मौजूद थे। वर्धा में उनके नाम से 'राजस्थान केसरी' नामक साप्ताहिक समाचार पत्र शुरू किया गया, जिसके संपादक विजय सिंह पथिक थे। वर्धा में ही केसरी सिंह का महात्मा गाँधी से घनिष्ठ संपर्क हुआ।

🪔 *निधन*
देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले क्रान्तिकारी कवि केसरी सिंह बारहट ने 'हरिओम तत् सत्' के उच्चारण के साथ 14 अगस्त, 1941 को देह त्याग दी। 
           
           🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳

🙏🌹 *विनम्र अभिवादन* 🌹🙏
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