23 AUGUST DINVISHESH


*23 ऑगस्ट दिनविशेष 2022 !*
🧩 *मंगळवार* 🧩
💥 *संत सेना महाराज पुण्यतिथी*


       🌍 *घडामोडी* 🌍    
 
👉 *2005 - कविवर्य विदा करंदीकर यांना ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करण्यात आला*
👉 *1997 - हळदीच्या पेटंटबाबतच्या अमेरिकेशी चालु असलेला कायदेशीर लढा भारताने जिंकला एखाद्या विकसनशील देशाने अमेरिकन पेटंटला आव्हान देऊन तो जिकंण्याची ही पहिलीच घटना आहे*         
👉 *1991 - वर्ल्ड वाइड वेब सार्वजनिक उपयोगासाठी सुरु झाले आहे*

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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर* 
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर) 
9860214288, 9423640394
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👉 *1944 - सायरा बानु चिञपट अभिनेञी यांचा जन्म*
👉 *1973 - मलाईका अरोरा खान माॅडेल व अभिनेञी  यांचा जन्म*

🌍 *मृत्यू*

👉 *2013 - आर.जे.काॅमन रेल्वेमार्ग गटाचे संस्थापक रिचर्ड जे.काॅर्मन यांचे निधन*
👉 *2003 - भारतीय कन्नड भाषीक लेखक ए.एन.मुर्ती राव यांचे  निधन*
 
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
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          *🥇सामान्य ज्ञान 🥇*

*👉मराठी या व्याकरण प्रकारातील संधीचे किती प्रकार पडतात व कोनते?*
*🥇तीन प्रकार 1) स्वर संधी 2) व्यंजन संधी 3) विसर्ग संधी*

*👉भीमाशंकर हे महाराष्ट्रातील ज्योतिर्लिंग कोणत्या जिल्ह्यात आहे?*
*🥇पुणे जिल्हा*

*👉जागतिक एड्स प्रतिबंध दिन हा केंव्हा असतो?*
*🥇1 डिसेंबर*

*👉महाराष्ट्र राज्याची स्थापना किती साली झाली आहे?*
*🥇1 में 1960*

*👉माइक्रोमीटरने काय मोजले जाते?*
*🥇लहान (कमी) अंतर*
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           *🕸 बोधकथा 🕸*
     
*▪️वकील व सरदार▪️*

*एका राजाने आपला वकील दुसर्‍या राजाच्या दरबारी पाठविला. तो तेथे जाऊन पोहोचल्यावर तेथील राजाने नोकर-चाकर पाठवून वाजंत्री वाजवत मोठय़ा सन्मानाने शहरात नेण्यास सुरुवात केली. तो वकील कंजूष असल्याने वाजंत्री व मिरवणूक यात पैसा विनाकारण खर्च व्हावा हे त्याला पटले नाही. म्हणून तो त्यांना म्हणाला, ''अरे, माझी आई वारली, तिच्या सुतकात मी असल्यामुळे हा सगळा थाटमाट तुम्ही बंद कराल तर बरं होईल.'' ते ऐकताच लोकांनी आपली वाद्य बंद केली. पुढे ही हकीगत तेथील एका सरदाराला समजली. तेव्हा तो त्या वकीलाजवळ येऊन त्याला म्हणाला,'' वकीलसाहेब आपल्या आईच्या मृत्यूची बातमी ऐकून मला फार वाईट वाटलं, आपली आई वारली, त्याला आज किती दिवस झाले बरं?'' वकील उत्तरला, ''त्या गोष्टीला आज चांगली चाळीस वर्षे झाली असतील.''*

*🧠तात्पर्य :-*
*पैसा वाचविण्यासाठी कंजूष माणूस वाटेल ती सबब सांगायला कमी करत नाही.*
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         *🌐 आजच्या बातम्या 🌐*

*📢नगराध्यक्ष, सरपंचांची निवड थेट जनतेतून, नगरपरिषद सुधारणा विधेयक संमत, 'ही जनतेची मागणी, आमचा अजेंडा नाही' मुख्यमंत्र्यांचे स्पष्टीकरण..*
*📢शेअर बाजारात 'ब्लॅक मंडे'; सलग दोन सत्रांत घसरण, गुंतवणूकदारांचे 6.5 लाख कोटींचे नुकसान*
*📢पत्राचाळ प्रकरण : संजय राऊतांचा जेलमध्ये मुक्काम कायम, 5 सप्टेंबरपर्यंत कोठडी*
*📢IPL 2023 प्रशिक्षक अनिल कुंबळेपाठोपाठ Punjab Kings कर्णधार बदलणार, इंग्लंडचा बेअरस्ट्राॅ नेतृत्व करण्याची शक्यता*
*📢विनायक मेटेंच्या अपघातानंतर परिवहन विभाग सतर्क; सर्व आमदारांच्या वाहन चालकांना देणार प्रशिक्षण*  
*📢विद्यार्थ्यांवर आली काठीला लटकून नदी ओलांडण्याची वेळ; पूल पुरात गेला वाहून.. औरंगाबाद जिल्हा परिषदेच्या चिकलठाण शाळेत जाण्यासाठी विद्यार्थ्यांना करावा लागतोय जीवघेणा प्रवास.* 
*📢सेन्सेक्सची घसरगुंडी, गुंतवणूकदारांचं मोठं नुकसान; Sensex 872 अंकानी घसरला*
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*मिलिंद वानखेडे*
*मुख्याध्यापक*
*प्रकाश हायस्कूल व ज्युनिअर कॉलेज  कान्द्री-माईन* 
*9860214288*
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🇮🇳 *आझादी का अमृत महोत्सव* 🇮🇳
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       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
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          *राजकुमार शुक्ल*  
           (स्वतंत्रता सेनानी)

      *जन्म : 23 अगस्त, 1875*
             (चम्पारण, बिहार)
      *मृत्यु : 20 मई, 1929*
             (मोतिहारी, बिहार)
नागरिकता : भारतीय
विशेष योगदान : चंपारण सत्याग्रह में अहम योगदान दिया।
अन्य जानकारी : ये राजकुमार शुक्ल ही थे जिन्होंने गांधीजी को चंपारण आने को बाध्य किया और आने के बाद गांधीजी के बारे में मौखिक प्रचार करके सबको बताया ताकि जनमानस गांधी पर भरोसा कर सके और गांधी के नेतृत्व में आंदोलन चल सके।
           राजकुमार शुक्ल भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय बिहार के चंपारण के निवासी और स्वतंत्रता सेनानी थे। ये राजकुमार शुक्ल ही थे जिन्होंने गांधीजी को चंपारण आने को बाध्य किया और आने के बाद गांधीजी के बारे में मौखिक प्रचार करके सबको बताया ताकि जनमानस गांधी पर भरोसा कर सके और गांधी के नेतृत्व में आंदोलन चल सके।

♨️ *चंपारण सत्याग्रह में योगदान*
                         महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह में दर्जनों नाम ऐसे रहे जिन्होंने दिन-रात एक कर गांधी का साथ दिया। अपना सर्वस्व त्याग दिया। उन दर्जनों लोगों के तप, त्याग, संघर्ष, मेहनत का ही असर रहा कि कठियावाड़ी ड्रेस में पहुंचे बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण से ‘महात्मा’ बनकर लौटते हैं और फिर भारत की राजनीति में एक नई धारा बहाते हैं। गांधी 1917 में चंपारण आए तो सबने जाना। गांधीजी के चंपारण आने के पहले भी एक बड़ी आबादी निलहों से अपने सामर्थ्य के अनुसार बड़ी लड़ाई लड़ रही थी। उस आबादी का नेतृत्व शेख गुलाब, राजकुमार शुक्ल, हरबंश सहाय, पीर मोहम्मद मुनिश, संत राउत, डोमराज सिंह, राधुमल मारवाड़ी जैसे लोग कर रहे थे। यह गांधीजी के चंपारण आने के करीब एक दशक पहले की बात है। 1907-08 में निलहों से चंपारण वालों की भिड़ंत हुई थी। यह घटना कम ऐतिहासिक महत्व नहीं रखती। शेख गुलाब जैसे जांबाज ने तो निलहों का हाल बेहाल कर दिया था। चंपारण सत्याग्रह का अध्ययन करने वाले भैरवलाल दास कहते हैं, ‘साठी के इलाके में शेख ने तो अंग्रेज बाबुओं और उनके अर्दलियों को पटक-पटककर मारा था। इस आंदोलन में चंपारण वालों पर 50 से अधिक मुकदमे हुए और 250 से अधिक लोग जेल गये। शेख गुलाब सीधे भिड़े तो पीर मोहम्मद मुनिश जैसे कलमकार ‘प्रताप’ जैसे अखबार में इन घटनाओं की रिपोर्टिंग करके तथ्यों को उजागर कर देश-दुनिया को इससे अवगत कराते रहे। राजकुमार शुक्ल जैसे लोग रैयतों को आंदोलित करने के लिए एक जगह से दूसरी जगह की भाग-दौड़ करते रहे।’

🤝 *🐪राजकुमार शुक्ल और गाँधीजी*
          1909 में गोरले नामक एक अधिकारी को भेजा गया। तब नील की खेती में पंचकठिया प्रथा चल रही थी यानी एक बीघा जमीन के पांच कट्ठे में नील की खेती अनिवार्य थी। ‘इस आंदोलन का ही असर रहा कि पंचकठिया की प्रथा तीनकठिया में बदलने लगी यानी रैयतों को पांच की जगह तीन कट्ठे में नील की खेती करने के लिए निलहों ने कहा।’ ‘गांधीजी के आने के पहले चंपारण में इन सारे नायकों की भूमिका महत्वपूर्ण रही।’ इनमें कौन महत्वपूर्ण नायक था, तय करना मुश्किल है। सबकी अपनी भूमिका थी, सबका अपना महत्व था, लेकिन 1907-08 के इस आंदोलन के बाद गांधी को चंपारण लाने में और उन्हें सत्याग्रही बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही राजकुमार शुक्ल की। ये राजकुमार शुक्ल ही थे जो गांधीजी को चंपारण लाने की कोशिश करते रहे। गांधीजी को चंपारण बुलाने के लिए एक जगह से दूसरी जगह दौड़ लगाते रहे। चिट्ठियां लिखवाते रहे।
चिट्ठियां गांधीजी को भेजते रहे। पैसे न होने पर चंदा करके, उधार लेकर गांधीजी के पास जाते रहे। कभी अमृत बाजार पत्रिका के दफ्तर में रात गुजारकर कलकत्ता (अब कोलकाता) में गांधीजी का इंतजार करते रहते, कई बार अखबार के कागज को जलाकर खाना बनाकर खाते तो कभी भाड़ा बचाने के लिए शवयात्रा वाली गाड़ी पर सवार होकर यात्रा करते। राजकुमार शुक्ल के ऐसे कई प्रसंग हैं। खुद गांधीजी ने अपनी आत्मकथा ‘माई एक्सपेरिमेंट विद ट्रूथ’ में राजकुमार शुक्ल पर एक पूरा अध्याय लिखा है।                       🙋🏻‍♂️ *रॉलेट एक्ट का विरोध*
                  राजकुमार शुक्ल की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण अध्याय गांधीजी के चंपारण से चले जाने के बाद का है, जिस पर अधिक बात नहीं होती। उनके जाने के बाद भी शुक्ल का काम जारी रहता है। रॉलेट एक्ट के विरुद्ध वे ग्रामीणों में जन जागरण फैलाते रहे। इस एक्ट को मार्च, 1919 में अंग्रेजों ने भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से बनाया था। यह कानून सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर बनाया गया था। इसके अनुसार ब्रितानी सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद कर सकती थी। इस कानून के तहत अपराधी को उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था। इस कानून के विरोध में देशव्यापी हड़तालें, जुलूस और प्रदर्शन होने लगे। गांधीजी ने व्यापक हड़ताल का आह्वान किया। गौरतलब है कि जलियांवाला बाग़ में रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, जिसमें अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी थीं। इस कानून के ख़िलाफ़ भी वे जनता को जागृत कर रहे थे। राजकुमार शुक्ल 1920 में हुए असहयोग आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वे चंपारण में किसान सभा का काम कर रहे थे। राजकुमार शुक्ल को गांधीजी की खबर अखबारों से मिलती रहती थी। उन्होंने उन्हें फिर से चंपारण आने के लिए कई पत्र लिखे पर गांधीजी का कोई आश्वासन नहीं मिला। शुक्ल अपनी जीर्ण-शीर्ण काया लेकर 1929 की शुरुआत में साबरमती आश्रम पहुंचे जहां गांधीजी से उनकी मुलाकात हुई। गांधीजी ने उनसे कहा कि आपकी तपस्या अवश्य रंग लाएगी। राजकुमार ने आगे पूछा, क्या मैं वह दिन देख पाऊंगा? गांधीजी निरुत्तर रहे। साबरमती से लौटकर शुक्ल अपने गांव सतबरिया नहीं गए। उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। 54 वर्ष की उम्र में 1929 में मोतिहारी में उनकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय उनकी बेटी देवपति वहीं रहती थी। मृत्यु के पूर्व शुक्ल ने अपनी बेटी से ही मुखाग्नि दिलवाने की इच्छा जाहिर की। मोतिहारी के लोगों ने इसके लिए चंदा किया। मोतिहारी में रामबाबू के बगीचे में शुक्ल का अंतिम संस्कार हुआ। उनके श्राद्ध में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद आदि दर्जनों नेता मौजूद थे।

          🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳

🙏🌹 *विनम्र अभिवादन* 🌹🙏                                                                                                                                                                                                                                                                     ➖➖➖➖➖➖➖➖➖                                          
     *⚜️ आझादी का अमृत महोत्सव ⚜️*
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       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
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            *टी. प्रकाशम*
         (स्वतंत्रता सेनानी)

पूरा नाम : तंगुतुरी प्रकाशम
*जन्म : 23 अगस्त, 1872*
( गुंटूर ज़िला, आंध्र प्रदेश)
*मृत्यु : 20 मई, 1957*
(हैदराबाद, आंध्र प्रदेश)
अभिभावक : गोपाल कृष्णैया
नागरिकता : भारतीय
पार्टी : भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, स्वतंत्र पार्टी
पद : आंध्र राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री, संयुक्त मद्रास प्रदेश के मुख्यमंत्री
शिक्षा : वकालत
पुरस्कार-उपाधि : आंध्र केसरी
धर्म : हिन्दू
अन्य जानकारी : वर्ष 1921 में ‘स्वराज्य’ नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन किया और 15 वर्ष तक अपने व्यय से इसे चलाते रहे।                                                       तंगुतुरी प्रकाशम प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और आंध्र राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री थे। उनका जन्म 23 अगस्त, 1872 ई. में गुन्टूर ज़िले के कनपर्ती नामक गाँव में हुआ था। टी. प्रकाशम का पूरा नाम 'टंगटूरी प्रकाशम' था। अल्पायु में ही उनके पिता का देहान्त हो गया था। उन्होंने पहले मद्रास और फिर इंग्लैण्ड से बैरिस्टर की पढ़ाई की थी। इंग्लैण्ड में दो मुकदमों की पैरवी भी उन्होंने की थी, और इसी समय महात्मा गाँधी से उनका प्रथम बार साक्षात्कार हुआ। देश में व्याप्त ग़रीबी को टी. प्रकाशम ने काफ़ी क़रीब से देखा था, इसीलिए गाँधी जी के प्रथम आन्दोलन के समय उन्होंने अपनी लाखों रुपये की बैरिस्टरी का त्याग कर दिया।

📖 *शिक्षा तथा व्यवसाय*
टी. प्रकाशम के पिता 'गोपाल कृष्णैया' का जल्दी देहांत हो जाने के कारण माँ ने एक होटल खोलकर बड़े परिश्रम से उनका पालन-पोषण किया। मद्रास से क़ानून की शिक्षा प्राप्त करके उन्होंने राजामुंद्री में वकालत शुरू की। शीघ्र ही उन्होंने इस क्षेत्र में बड़ा नाम कमाया। 29 वर्ष की उम्र में टी. प्रकाशम राजामुंद्री नगरपालिका के अध्यक्ष चुने गए थे। अपने मित्रों के आग्रह पर 1904 ई. में टी. प्रकाशम बैरिस्टर की शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड गए। भारत लौटने पर 1907 ई. में उन्होंने मद्रास में बैरिस्टरी आरंभ की और शीघ्र ही उनकी गणना प्रमुख बैरिस्टरों में होने लगी।               🤝 *गाँधी जी से भेंट*
प्रकाशम ने 15 वर्षों तक खूब धन कमाया और सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया। इन्हीं दिनों उन्होंने ‘लॉ टाइम्स’ नामक पत्र का संपादन किया, प्रिवी कौंसिल में मुकदमा लड़ने के लिए दो बार इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ उनकी भेंट प्रथम बार गाँधी जी से हुई। गाँधी जी के विचारों का उन पर बहुत प्रभाव पड़ा। देश में संपन्नता के चारों ओर फैली ग़रीबी को वे देख चुके थे। देश की स्वाधीनता के लिए गाँधी जी ने जो पहला आंदोलन आरंभ किया, टी. प्रकाशम भी अपनी लाखों रुपये की बैरिस्टरी त्यागकर उस आंदोलन में सम्मिलित हो गए। 1921 से आगामी 13 वर्षों तक वे आंध्र प्रदेश में कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने राष्ट्रीय भावनाओं के प्रचार के लिए 1921 में ‘स्वराज्य’ नामक दैनिक पत्र का प्रकाशन किया और 15 वर्ष तक अपने व्यय से इसे चलाते रहे।

♨️ *आंध्र केसरी की उपाधि*
आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्हें जेल की सजाएँ मिलीं। 1927 में साइमन कमीशन के विरोध में आयोजित प्रदर्शन पर पुलिस द्वारा की गई गोलाबारी के बीच से मृत और घायल व्यक्तियों को निकालने के लिए वे ही आगे बढ़े थे। तभी से वे ‘आंध्र केसरी’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 1937 में जब देश में पहले कांग्रेसी मंत्रिमंडल स्थापित हुए तो टी. प्रकाशम सी. राजगोपालाचारी के मंत्रिमंडल में राजस्व मंत्री के रूप में सम्मिलित हुए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद, अप्रैल 1946 में वे संयुक्त मद्रास प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और लगभग 13 महीनों तक इस पद पर रहकर उन्होंने समाज-सुधार और आर्थिक उन्नति की कई योजनाएँ आरंभ की।

🔰 *आंध्र प्रदेश का गठन*
भाषावार प्रदेशों के गठन के आधार पर अलग आंध्र प्रदेश की स्थापना के लिए पोट्ठि श्रीरामालू ने 15 दिसंबर, 1952 ई. को आत्मदाह कर लिया, तो उसके बाद 1 अक्टूबर, 1953 ई. को आंध्र का क्षेत्र मद्रास से अलग करके नया राज्य बना दिया गया। इस नए राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री आंध्र केसरी टी. प्रकाशम ही बने। इस राज्य की स्थापना के लिए वहाँ 40 वर्षों से आंदोलन चल रहा था, परंतु ‘विशाल आंध्र प्रदेश’ अक्टूबर, 1956 में ही बन पाया। इस प्रकार टी. प्रकाशम ने अपने जीवन में ही अपनी यह आकांक्षा पूरी होते देखी।

🪔 *मृत्यु*
आन्ध्र प्रदेश राज्य की स्थापना के कुछ समय बाद ही 20 मई, 1957 को टी. प्रकाशम का देहान्त हो गया। आज भी उन्हें आन्ध्र में वे बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है।                 
           
          🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳

🌹🙏 *विनम्र अभिवादन* 🙏🌷                                                                                                                                                                                                                                                                   ➖➖➖➖➖➖➖➖➖

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