20 सप्टेंबर दिनविशेष


*20 सप्टेंबर दिनविशेष 2022 !*
        
          🧩 *मंगळवार* 🧩
 
       
         🌍 *घडामोडी* 🌍    
 
👉 *2004 - एग्युॲट या उपग्रहांचा श्रीहरीकोटा येथील तळावर यशस्वी प्रक्षेपण करण्यात आले*
👉 *2017 - मारिया चक्रवादळ या वादळामुळे पोर्तो रिको मध्ये किमान 2,975 लोकांचे निधन*         
👉 *2001 - दहशतवाद विरूध्द युध्द- अमेरिकेचे अध्यक्ष जाॅर्ज डब्ल्यू बुश यांनी दहशतवादविरध्द कारवाई करण्यासाठी लढा देण्याची घोषणा केली*

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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर* 
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर) 
9860214288, 9423640394
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🌍 *जन्म*

👉 *1949 - महेश भट्ट- चिञपट दिग्दर्शक यांचा जन्म*
👉 *1922 - द.न.गोखले  - चरिञ वाड:मय यांचा जन्म*

🌍 *मृत्यू*

👉 *2015 - भारतीय उद्योजक जगमोहन दालमिया  यांचे निधन*
👉 *1996 - दया पवार- मराठी साहित्यीक  यांचे  निधन*
 
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
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*आजच्या बातम्या*

1.राज्यातील ग्रामपंचायत निवडणुकीचे निकाल जाहीर, राष्ट्रवादी आणि भाजपची सरशी, काँग्रेसची पिछेहाट 

2.संजय राऊत यांचा जेलमधील मुक्काम वाढला, कोठडी 14 दिवसांनी वाढली  पत्राचाळ घोटाळ्यातील मास्टरमाईंड संजय राऊतच, आरोपपत्रात ईडीचा दावा 

3. सणासुदीच्या काळात एसटी कर्मचाऱ्यांवर आर्थिक संक्रांत? शिंदे सरकारच्या निर्णयामुळे महामंडळ पेचात  

4. विदर्भातील जनतेला वेगळा विदर्भ हवा असेल तरच वेगळ्या विदर्भाचा निर्णय घ्यावा.. वेगळ्या विदर्भासंदर्भात विचारलेल्या प्रश्नावर राज ठाकरे यांचं उत्तर  राज्यात आलेला उद्योग बाहेर जातोच कसा? फॉक्सकॉन प्रकरणाची चौकशी व्हावी; राज ठाकरेंचा हल्लाबोल 

5. मंत्री संजय राठोड यांना शह देण्यासाठी शिवसेनेची मोठी खेळी, बंजारा समाजाचे तीन महंत शिवबंधन बांधणार?   यवतमाळ जिल्ह्यातील माजी राज्यमंत्री संजय देशमुख शिवसेनेच्या वाटेवर! मंत्री संजय राठोडांना शह देण्यासाठी सेना नेतृत्वाची रणनिती 

6. पक्षातील लोकांनीच कारस्थान करून मुख्यमंत्रीपदावरून हटवले; ज्येष्ठ काँग्रेस नेते सुशीलकुमार शिंदे यांचा निशाणा 

7. अरेच्चा हे काय... यंदा पुरुषोत्तम करंडकाचा मान कोणालाच नाही! कंरडकाच्या योग्यतेची एकांकिका आणि अभिनय सादर झाला नसल्याचा परीक्षक मंडळाचा दावा  'दर्जेदार एकांकिका नाहीत म्हणून स्पर्धा होणार नाही असं जाहीर करून टाकावं'; दिग्दर्शक विजू माने यांनी व्यक्त केला संताप 

8.. आज महाराणी एलिझाबेथ यांच्यावर अंत्यसंस्कार, भारताच्या राष्ट्रपती द्रौपदी मुर्मू यांच्यासह अनेक देशांच्या प्रमुखांची अंत्यसंस्कारासाठी उपस्थिती 

*ग्रामपंचायत निवडणूक निकाल विशेष*

धमदाईमध्ये धाकट्या भावाकडून मोठ्या भावाचा पराभव; 
कोळदामध्ये महिला उमेदवाराचा एका मताने विजय 

दिल्लीतील शेतकरी आंदोलनात माओवाद्यांचा शिरकाव; 'या' राज्यांत हातपाय पसरण्यासाठी प्रयत्न सुरू  

संभाजीराजेंच्या स्वराज्य संघटनेची ग्रामपंचायतीत एन्ट्री, नाशिकमध्ये पहिला विजय 

पुण्यात 'राष्ट्रवादीच पुन्हा', 61 पैकी 30 ग्रामपंचायतींवर वर्चस्व, भाजपकडे तीन ग्रामपंचायती 

जळगावात भाजप-काँग्रेसला भोपळा! 13 पैकी एकही ग्रामपंचायत मिळाली नाही 

*स्पेशल*

1.मोठी बातमी! औरंगाबादच्या पिशोर भागात ढगफुटी सदृश पाऊस; सात गावांचा संपर्क तुटला 

2..Refinery in Konkan : रिफायनरीला विरोध असलेल्या ठिकाणी ग्रामस्थांचे केले जाणार प्रबोधन; असा असेल कार्यक्रम? 

3..Maharashtra Board Exam Time Table : राज्य मंडळाच्या दहावी बारावी परीक्षांचे संभाव्य वेळापत्रक जाहीर
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*महाराष्ट्र राज्य मंडळाच्या दहावी आणि बारावी बोर्ड परीक्षेच्या संभाव्य तारखा जाहीर*
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 *बारावीची परीक्षा 21 फेब्रुवारी 2023  तर दहावीची परीक्षा 02 मार्च 2023 पासून सुरू होणार*
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4..Grampanchayat Election: राज्यातील ग्रामपंचायत निवडणुकीचे निकाल जाहीर, राष्ट्रवादी आणि भाजपची सरशी, काँग्रेसची पिछेहाट

5..पत्राचाळ घोटाळ्यातील मास्टरमाईंड संजय राऊतच, आरोपपत्रात ईडीचा दावा
पत्राचाळ घोटाळ्यातील मास्टरमाईंड संजय राऊतच, आरोपपत्रात ईडीचा दावा

6.Sanjay Raut Lawyer : संजय राऊत यांच्या जामीन अर्जावर युक्तीवाद कधी होणार? वकील म्हणाले...

7..Ramdas Kadam on Uddhav Thackeray: अरे किती वेळा सांगशील? एकेरी उल्लेख करत उद्धव ठाकरेंवर हल्लाबोल
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*GENERAL KNOWLEDGE*
◆ Name the National Reptile of India?
Ans. : *King Cobra*

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        *STORY TELLING*

*The Golden Goose*

There lived a goose, special one as that, in a lake. It had beautiful golden feathers. Near the lake lived an old woman with her daughters. Even though they worked hard, they remained poor.

One day, the goose thought: Maybe I can give one golden feather every day so that these women can sell it and have enough money to live.

The next day, the goose went to the old woman. “I have nothing to give you!” said the old woman. “But, I have something for you!” said the goose and explained what she can do!

The old woman and her daughters went to the market to sell the golden feather. That day, they came back happy with enough money on hand.
Day after day, the goose continued to help the old woman and her daughters. The daughters loved to play with the bird and would take care of it on rainy and cold days!

As time went by, the old woman became more greedy! How can one feather help her? “When the goose comes by tomorrow, we should pluck all of its feathers!” she told her daughters. Aghast, they refused to help her with this.
The next day, the old woman waited for the goose to arrive. As soon as the bird arrived, it held by its next and began to pluck at its feathers.

As soon as she plucked them, the feathers turned white. The old woman wailed and let go of the goose.
“You have been greedy! When you plucked my golden feathers without my wish, they turned white!”
The angry goose flew away never to be seen again!
*Moral of the story :*
Too much greed leads to a lot of loss. It is good to not steal from others or wish for others out of selfishness.
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  *SPECIAL INTRODUCTION*

*Jagmohan Dalmiya*

Jagmohan Dalmiya was the man behind India’s growth as the super power on the cricketing map. The veteran administrator gave up his dreams of playing cricket during college days  but returned to the game as the administrator, rose through the ranks and became the first Indian to be the ICC president.

A master of realpolitik and a genius with money, Jagmohan Dalmiya is the man most responsible for turning the gentleman's game into a global sport of big money and a reach well beyond its traditional bastions. Dalmiya was born into the Marwari business community of Kolkata, and cricket and money were equal passions for him.

He was a club-standard wicketkeeper, who once made a double-century. At 20 he took over his father's construction business, but it was in the business of cricket that he would make his name. He joined the BCCI in 1979, and was one of the young turks - Inderjit Singh Bindra was another - who helped win the right to stage the World Cup in India in 1987. That brought big money into the subcontinent, and Dalmiya and Bindra led the commercialisation of the game through the early '90s, making the BCCI the richest cricket board on the planet.

Personal ambition led to a rift between the two, and Dalmiya emerged better off - the man who hasn't lost an election in his life was elected chairman of the International Cricket Council in 1997. His commercial skills and flair for striking deals turned round the cash-strapped ICC's fortunes. But the Establishment hated Dalmiya's unconventional ways, and he was jettisoned after a TV-rights controversy in 2000.

Dalmiya was elected board president for a second term in March 2015. By this time, however, his health was poor and he suffered a heart attack on September 17. He died in hospital two days later at the age of 75.

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               *PASAYDAN*
                 *SILENCE*
*All students will keep silence for two minutes.*
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*MILIND V. WANKHEDE*
*HEADMASTER*
*PRAKASH HIGHSCHOOL AND JUNIOR COLLEGE KANDRI MINE*
*9860214288*
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*🇮🇳 आझादी का अमृत महोत्सव 🇮🇳*
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       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
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               *डाॕ. एनी बेसेन्ट*
*(ब्रिटिश समाजवादी, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकार कार्यकर्ता, लेखक और व्याख्याता)*

     *जन्म : 1 अक्टूबर 1847*
           ( लन्दन कलफम )
    *मृत्यु : 20 सितम्बर 1933* 
             (उम्र 85) मद्रास
प्रसिद्धि कारण : थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला
जीवनसाथी : रेवरेण्ड फ्रैंक

अग्रणी आध्यात्मिक, थियोसोफिस्ट, महिला अधिकारों की समर्थक, लेखक, वक्ता एवं भारत-प्रेमी महिला थीं। सन १९१७ में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा भी बनीं।

💁 *जीवनी*
        डॉ. एनी बेसेन्ट (Dr. Annie Wood Besant) का जन्म लन्दन शहर में १८४७ में हुआ। इनके पिता अंग्रेज थे। पिता पेशे से डाक्टर थे। पिता की डाक्टरी पेशे से अलग गणित एवं दर्शन में गहरी रूचि थी। इनकी माता एक आदर्श आयरिस महिला थीं। डॉ. बेसेन्ट के ऊपर इनके माता पिता के धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव था। अपने पिता की मृत्यु के समय डॉ. बेसेन्ट मात्र पाँच वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के बाद धनाभाव के कारण इनकी माता इन्हें हैरो ले गई। वहाँ मिस मेरियट के संरक्षण में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। मिस मेरियट इन्हें अल्पायु में ही फ्रांस तथा जर्मनी ले गई तथा उन देशों की भाषा सीखीं। १७ वर्ष की आयु में अपनी माँ के पास वापस आ गईं।

    युवावस्था में इनका परिचय एक युवा पादरी से हुआ और १८६७ में उसी रेवरेण्ड फ्रैंक से एनी बुड का विवाह भी हो गया। पति के विचारों से असमानता के कारण दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा। संकुचित विचारों वाला पति असाधारण व्यक्तित्व सम्पन्न स्वतंत्र विचारों वाली आत्मविश्वासी महिला को साथ नहीं रख सके। १८७० तक वे दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं। ईश्वर, बाइबिल और ईसाई धर्म पर से उनकी आस्था डिग गई। पादरी-पति और पत्नी का परस्पर निर्वाह कठिन हो गया और अन्ततोगत्वा १८७४ में सम्बन्ध-विच्छेद हो गया। तलाक के पश्चात् एनी बेसेन्ट को गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और उन्हें स्वतंत्र विचार सम्बन्धी लेख लिखकर धनोपार्जन करना पड़ा।

         डॉ. बेसेन्ट इसी समय चार्ल्स व्रेडला के सम्पर्क में आई। अब वह सन्देहवादी के स्थान पर ईश्वरवादी हो गई। कानून की सहायता से उनके पति दोनों बच्चों को प्राप्त करने में सफल हो गये। इस घटना से उन्हें हार्दिक कष्ट हुआ।

      यह अत्यन्त अमानवीय कानून है जिसने बच्चों को उनकी माँ से अलग करवा दिया है। मैं अपने दु:खों का निवारण दूसरों के दु:ख दूर करके करुंगी और सब अनाथ एवं असहाय बच्चों की माँ बनूंगी।
डॉ॰ बेसेन्ट ने अपने इस कथन को सत्य सिद्ध किया और अपना अधिकांश जीवन दीन हीन अनाथों की सेवा में ही व्यतीत किया।

          महान् ख्याति प्राप्त पत्रकार विलियन स्टीड के सम्पर्क में आने पर वे लेखन एवं प्रकाशन के कार्य में अधिक रुचि लेने लगीं। अपना अधिकांश समय मजदूरों, अकाल पीड़ितों तथा झुग्गी झोपड़ियों में रहने वालों को सुविधा दिलाने में व्यतीत किया। वह कई वर्षों तक इंग्लैण्ड की सर्वाधिक शक्तिशाली महिला ट्रेड यूनियन की सेक्रेटरी रहीं। वे अपने ज्ञान एवं शक्ति को सेवा के माध्यम से चारों ओर फैलाना नितान्त आवश्यक समझती थीं। उनका विचार था कि बिना स्वतंत्र विचारों के सत्य की खोज संभव नहीं है।

      १८७८ में ही उन्होंने प्रथम बार भारतवर्ष के बारे में अपने विचार प्रकट किये। उनके लेख तथा विचारों ने भारतीयों के मन में उनके प्रति स्नेह उत्पन्न कर दिया। अब वे भारतीयों के बीच कार्य करने के बारे में दिन-रात सोचने लगीं। १८८३ में वे समाजवादी विचारधारा की ओर आकर्षित हुईं। उन्होंने 'सोसलिस्ट डिफेन्स संगठन' नाम की संस्था बनाई। इस संस्था में उनकी सेवाओं ने उन्हें काफी सम्मान दिया। इस संस्था ने उन मजदूरों को दण्ड मिलने से सुरक्षा प्रदान की जो लन्दन की सड़कों पर निकलने वाले जुलूस में हिस्सा लेते थे।

                   १८८९ में एनी बेसेन्ट थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुईं। उनके अन्दर एक शक्तिशाली अद्वितीय और विलक्षण भाषण देने की कला निहित थी। अत: बहुत शीघ्र उन्होंने अपने लिये थियोसोफिकल सोसायटी की एक प्रमुख वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को थियोसोफी की शाखाओं के माध्यम से एकता के सूत्र में बाधने का आजीवन प्रयास किया। उन्होंने भारत को थियोसोफी की गतिविधियों का केन्द्र बनाया।

        उनका भारत आगमन १८९३ में हुआ। सन् १९०६ तक इनका अधिकांश समय वाराणसी में बीता। वे १९०७ में थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्षा निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिन्दू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्रीय पुनर्जागरण का कार्य प्रारम्भ किया। भारत के लिये राजनीतिक स्वतंत्रता आवश्यक है इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये उन्होंने 'होमरूल आन्दोलन' संगठित करके उसका नेतृत्व किया।

           २० सितम्बर १९३३ को वे ब्रह्मलीन हो गई। आजीवन वाराणसी को ही हृदय से अपना घर मानने वाली बेसेन्ट की अस्थियाँ वाराणसी लाई गयीं और शान्ति-कुंज से निकले एक विशाल जन-समूह ने उन अपशेषों को ससम्मान सुरसरि को समर्पित कर दिया।

⚛ *डॉ. एनी बेसेन्ट के विचार*

             भारत हितैषी एनी बेसेन्ट
डॉ. बेसेन्ट के जीवन का मूलमंत्र था 'कर्म'। वह जिस सिद्धान्त पर विश्वास करतीं उसे अपने जीवन में उतार कर उपदेश देतीं। वे भारत को अपनी मातृभूमि समझती थीं। वे जन्म से आयरिश, विवाह से अंग्रेज तथा भारत को अपना लेने के कारण भारतीय थीं। तिलक, जिन्ना एवं महात्मा गाँधी आदि ने उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की। वे भारत की स्वतंत्रता के नाम पर अपना बलिदान करने को सदैव तत्पर रहती थीं।

        वे भारतीय वर्ण व्यवस्था की प्रशंसक थीं। परन्तु उनके सामने समस्या थी कि इसे व्यवहारिक कैसे बनाया जाय ताकि सामाजिक तनाव कम हो। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा का समुचित प्रबन्ध होना चाहिए। शिक्षा में धार्मिक शिक्षा का समावेश हो। ऐसी शिक्षा देने के लिए उन्होंने १८९८ में वाराणसी में सेन्ट्रल हिन्दू स्कूल की स्थापना की। सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह, जाति व्यवस्था, विधवा विवाह, विदेश यात्रा आदि को दूर करने के लिए उन्होंने 'ब्रदर्स ऑफ सर्विस' नामक संस्था का संगठन किया। इस संस्था की सदस्यता के लिये आवश्यक था कि उसे नीचे लिखे प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ता था -

१. मैं जाति पाँति पर आधारित छुआछूत नहीं करुँगा।
२. मैं अपने पुत्रों का विवाह १८ वर्ष से पहले नहीं करुँगा।
३. मैं अपनी पुत्रियों का विवाह १६ वर्ष से पहले नहीं करुंगा।
४. मैं पत्नी, पुत्रियों और कुटुम्ब की अन्य स्त्रियों को शिक्षा दिलाऊँगा; कन्या शिक्षा का प्रचार करुँगा। स्त्रियों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करुँगा।
५. मैं जन साधारण में शिक्षा का प्रचार करुँगा।
६. मैं सामाजिक एवं राजनीतिक जीवन में वर्ग पर आधारित भेद-भाव को मिटाने का प्रयास करुँगा।
७. मैं सक्रिय रूप से उन सामाजिक बन्धनों का विरोध करुँगा जो विधवा, स्त्री के सामने आते हैं तो पुनर्विवाह करती हैं।
८. मैं कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक शिक्षा एवं सामाजिक और राजनीतिक उन्नति के क्षेत्र में एकता लाने का प्रयत्न भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व व निर्देशन में करुंगा।
डॉ. एनी बेसेन्ट की मान्यता थी कि बिना राजनैतिक स्वतंत्रता के इन सभी कठिनाइयों का समाधान सम्भव नहीं है।

             डॉ. एनी बेसेन्ट स्वभावतः धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उनके राजनीतिक विचार की आधारशिला थी उनके आध्यात्मिक एवं नैतिक मूल्य। उनका विचार था कि अच्छाई के मार्ग का निर्धारण बिना अध्यात्म के संभव नहीं। कल्याणकारी जीवन प्राप्त करने के लिये मनुष्य की इच्छाओं को दैवी इच्छा के अधीन होना चाहिये। राष्ट्र का निर्माण एवं विकास तभी सम्भव है जब उस देश के विभिन्न धर्मों, मान्यताओं एवं संस्कृतियों में एकता स्थापित हो। सच्चे धर्म का ज्ञान आध्यात्मिक चेतना द्वारा ही मिलता है। उनके इन विचारों को महात्मा गाँधी ने भी स्वीकार किया। प्राचीन भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का स्वरूप आध्यात्मिक था। यही आध्यात्मिकता उस समय के भारतीयों की निधि थी।

       डॉ. बेसेन्ट का उद्देश्य था हिन्दू समाज एवं उसकी आध्यात्मिकता में आयी हुई विकृतियों को दूर करना। उन्होंने भारतीय पुनर्जन्म में विश्वास करना शुरू किया। उनका निश्चित मत था कि वह पिछले जन्म में हिन्दू थीं। वह धर्म और विज्ञान में कोई भेद नहीं मानती थीं। उनका धार्मिक सहिष्णुता में पूर्ण विश्वास था। उन्होंने भारतीय धर्म का गम्भीर अध्ययन किया। उनका भगवद्गीता का अनुवाद 'थाट्स आन दी स्टडी ऑफ दी भगवद्गीता' इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू धर्म एवं दर्शन में उनकी गहरी आस्था थी। वे कहा करती थीं कि हिन्दू धर्म में इतने सम्प्रदायों का होना इस बात का प्रमाण है कि इसमें स्वतंत्र बौद्धिक विकास को प्रोत्साहन दिया जाता है। वे यह मानती थीं कि विश्व को मार्ग दर्शन करने की क्षमता केवल भारत में निहित है। वे भारत के सदियों से अन्धविश्वासों से ग्रस्त मानव को मुक्त करना चाहती थीं।

                    डॉ. बेसेन्ट ने निर्धनों की सेवा का आदर्श समाजवाद में देखा। गरीबी दूर करने के लिये उनका विश्वास था कि औद्योगीकरण हो। उन्होंने देखा कि नारी को किसी प्रकार की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। वे लोग भोग की वस्तु समझी जाती थीं। इस दु:खद स्थिति से डॉ. बेसेन्ट का हृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने नारी सुरक्षा का प्रश्न उठाया और जोर देकर कहा कि समाज में सर्वांगीण विकास के लिये नारी अधिकारों को सुरक्षित करना आवश्यक है। डॉ. बेसेन्ट प्राचीन धर्म आधारित वर्ण व्यवस्था की समर्थक थीं। वर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य कार्य विभाजन था जिसके अनुसार समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्यों को करने की योग्यता द्वारा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र का स्थान प्राप्त करता था। वे कहा करती थीं कि महाभारत के अनुसार ब्राह्मण में शूद्र के गुण हैं तो वह शूद्र है। शूद्र में अगर ब्राह्मण के गुण हैं तो वह ब्राह्मण समझा जायगा।

                 उस समय विदेश यात्रा को अधार्मिक समझा जाता था। उन्होंने बताया कि प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों से पता चलता है कि श्याम, जावा, सुमात्रा, कम्बोज, लंका, तिब्बत तथा चीन आदि देशों में हिन्दू राज्य के चिह्न पाये गये हैं। अत: हिन्दूओं की विदेश यात्रा प्रमाणित हो जाती है। उन्होंने विदेश यात्रा को प्रोत्साहन दिये जाने का समर्थन किया। उनके अनुसार आध्यात्मिक बुद्धि एवं शारीरिक शक्ति के सम्मिश्रण से राष्ट्र का उत्थान करना प्राचीन भारत की विशेषता रही है।

              वे विधवा विवाह को धर्म मानती थीं। उनकी धारणा थी कि प्रौढ़ विधवाओं को छोड़कर किशोर एवं युवावस्था की विधवाओं को सामाजिक बुराई रोकने के लिए विवाह करना आवश्यक है। वे अन्तर्जातीय विवाहों को भी धर्म सम्मत मानती थीं। बहु विवाह को वे नारी गौरव का अपमान एवं समाज का अभिशाप मानती थीं। किसी भी देश के निर्माण में प्रबुद्ध वर्ग की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। यह प्रबुद्ध वर्ग उस देश की शिक्षा का उपज होता है। अतः शिक्षा व्यवस्था को वे अत्यधिक महत्व देती थीं। उन्होंने शिक्षा पाठ्यक्रमों में धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा को अनिवार्य रूप से पढ़ाये जाने तथा उसे प्राचीन भारतीय आदर्शों पर आधारित होने के लिये जोर दिया। उनकी धारणा थी कि प्रत्येक भारतीय को संस्कृत तथा अंग्रेजी दोनों का ज्ञान होना चाहिये।

             १९१३ से १९१९ तक वह भारतीय राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में थीं। सितम्बर १९१६ में उन्होंने होमरूल लीग (स्वराज्य संघ) की स्थापना की और स्वराज्य के आदर्श को लोकप्रिय बनाने के लिये प्रचार किया किन्तु १९१९ के बाद वे अकेली पड़ गईं। इसका तात्कालिक कारण बाल गंगाधर तिलक से उनका विवाद होना था। जब गाँधी जी ने अपना सत्याग्रह आन्दोलन प्रारम्भ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्य धारा से और भी पृथक् हो गई। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि एनी बेसेन्ट ने गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन की अत्यन्त असंयमित भाषा में भर्त्सना करते हुये उनके आन्दोलन को क्रान्तिकारी, अराजकतावादी तथा घृणा और हिंसा को उभाड़ने वाला आन्दोलन निरूपित किया था। गाँधी के दर्शन एवं नेतृत्व को उन्होंने स्वतंत्रता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बताया था। उन्होंने गाँधी जी को अस्पष्ट स्वराज देखने वाला और रहस्यवादी राजनीतिज्ञ बताया। उन्हें इस बात से सन्देह था कि गाँधी जी सच्चे हृदय से पश्चाताप, उपवास, तपस्या आदि में विश्वास करते हैं। उन्होंने देश की जनता को चेतावनी दी थी कि यदि गाँधीवादी प्रणाली को अपनाया गया तो देश पुनः अराजकता के खड्ड में जा गिरेगा।

✝ *ईसाई धर्म की आलोचना*
                    Christianity: Its Evidences, Its Origin, Its Morality, Its History  
लेखक : एनी बेसेन्ट
श्रृंखला : द फ्रीथिंकर्स टेक्स्टबुक
प्रकाशन तिथि : 1876

        डॉ एनी बेसेन्ट का विचार था कि शताब्दियों से ईसाई धर्म के नेता स्त्रियों को 'आवश्यक बुराई' कहते चले आ रहे हैं और चर्च के सबसे महान सेन्ट वे हैं जो स्त्रियों से सर्वाधिक घृणा करते हैं। अपने 'क्रिस्चियानिटी' नामक ग्रन्थ में वे बताती हैं कि वे गास्पेल को विश्वसनीय क्यों नहीं मानतीं हैं।

📚 *प्रमुख कृतियाँ*
              प्रतिभा-सम्पन्न लेखिका और स्वतंत्र विचारक होने के नाते श्रीमती एनी बेसेन्ट ने थियोसॉफी (ब्रह्मविद्या) पर करीब २२० पुस्तकों व लेखों की बाढ़ लगा दी थी। 'अजैक्स' उपनाम से भी उनकी लेखनी चली थी। पूर्व-थियोसॉफिकल पुस्तकों एवं लेखों की संख्या लगभग १०५ है। १८९३ में उन्होंने अपनी आत्मकथा प्रकाशित की थी। उनकी जीवनीपरक कृतियों की संख्या ६ है। उन्होंने केवल एक साल के अन्दर १८९५ में सोलह पुस्तकें और अनेक पैम्प्लेट प्रकाशित किये जो ९०० पृष्ठों से भी अधिक थे। एनी बेसेन्ट ने भगवद्गीता का अंग्रेजी-अनुवाद किया तथा अन्य कृतियों के लिए प्रस्तावनाएँ भी लिखीं। उनके द्वारा क्वीन्स हॉल में दिये गये व्याख्यानों की संख्या प्राय: २० होगी। भारतीय संस्कृति, शिक्षा व सामाजिक सुधारों पर संभवत: ४८ ग्रंथों और पैम्प्लेटों की उन्होंने रचना की। भारतीय राजनीति पर करीबन ७७ पुष्प खिले। उनकी मौलिक कृतियों से चयनित लगभग २८ ग्रंथों का प्रणयन हुआ। समय-समय पर 'लूसिफेर', 'द कामनवील' व 'न्यू इंडिया' के संपादन भी एनी बेसेन्ट ने किये। गत शताब्दी में प्रकाशित उनके प्रसिद्ध ग्रंथ निम्नलिखित हैं :

१. डेथ-ऐण्ड आफ्टर (थियोसॉफिकल मैन्युअल III) - १८९३
२. आत्मकथा - १८९३
३. इन द आउटर कोर्ट - १८९५
४. कर्म (थियोसॉफिकल मैन्युअल IV) - १८९५ - कर्म-व्यवस्था का सुन्दर चित्रण।
५. द सेल्फ ऐण्ड इट्स शीथ्स - १८९५
६. मैन ऐण्ड हिज बौडीज (थियोसॉफिकल मैन्युअल VII) - १८९६
७. द पाथ ऑफ डिसाइपिल्शिप - १८९६ - मुमुक्ष का मार्ग।
८. द ऐंश्यिएण्ट विज्डम - १८९७
९. फोर ग्रेट रेलिजन्स - १८९७ - धर्म पर प्रसिद्ध पुस्तक - कालान्तर में चार भागों में प्रकाशित - हिन्दूइज्म, जोरैस्ट्रियनिज्म, बुद्धिज्म, क्रिश्चियैनिटी।
१०. एवोल्यूशन ऑफ लाइफ एण्ड फॉर्म - १८९९

✍️ *श्रीमती एनी बेसेन्ट द्वारा बीसवीं शताब्दी में कोरी गयी रचनाओं में निम्नलिखित सुप्रसिद्ध हैं-*

११. सम प्रॉब्लम्स ऑफ लाइफ - १९००
१२. थॉट पावर : इट्स कण्ट्रोल ऐण्ड कल्चर - १९०१
१३. रेलिजस प्रॉब्लम् इन इण्डिया - १९०२ - यह उनकी एक महान साहित्यिक कृति थी जो कालान्तर में चार भागों - इस्लाम, जैनिज्म, सिक्खिज्म, थियोसॉफी - में प्रकाशित हुई।
१३. रेलिजस प्रॉब्लम् इन इण्डिया - १९०२ - यह उनकी एक महान साहित्यिक कृति थी जो कालान्तर में चार भागों - इस्लाम, जैनिज्म, सिक्खिज्म, थियोसॉफी - में प्रकाशित हुई।
१४. द पेडिग्री ऑफ मैन - १९०४
१५. ए स्टडी इन कौंसेस्नेस - १९०४
१६. ए स्टडी इन कर्मा - १९१२ - कर्म-सिद्धान्त पर प्रणीत।
१७. वेक अप, इण्डिया : ए प्ली फॉर सोशल रिफॉर्म - १९१३
१८. इण्डिया ऐण्ड ए एम्पायर - १९१४
१९. फॉर इण्डियाज अपलिफ्ट - १९१४
२०. द कॉमनवील - १९१४ की जुलाई से निकालना शुरू किया (प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र)
२१. न्यू इण्डिया - १९१५ - मद्रास (चेन्नई) से निकलने वाला दैनिक पत्र।
२२. हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम - १९१५ - यह प्रसिद्ध ग्रंथ आफिशियल रिकार्डों के आधार पर रचित राष्ट्रीय कांग्रेस की कहानी है।
२३. इण्डिया : ए नेशन - १९१५ - द पीपुल्स बुक्स सिरीज की इस पुस्तक को १९१६ में अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया और एनी बेसेन्ट को अलगे वर्ष नजरबन्द कर दिया गया।
२४. कांग्रेस स्पीचेज - १९१७
२५. द बर्थ ऑफ न्यू इण्डिया - १९१७ - यह पुस्तक फॉर इण्डियाज अपलिफ्ट - १९१४, से मिलती जुलती है।
२६. लेटर्स टू ए यंग इण्डियन प्रिन्स - १९२१ - इस ग्रंथ में छोटे-छोटे देशी राज्यों को आधुनिक तरीकों से पुनर्गणित करने की संस्तुति की गयी है।
२७. द फ्यूचर ऑफ इण्डियन पॉलिटक्स - १९२२ - इसकी उपादेयता तत्कालीन समस्याओं को समझने के लिए रही है।
२८. ब्रह्म विद्या - १९२३
२९. इण्डियन आर्ट - १९२५ - भारतीय संस्कृति पर यह पुस्तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में दिये गये कमला लेक्चर पर आधारित है।
३०. इण्डिया : बौण्ड ऑर फ्री? - १९२६ - यह पुस्तक अद्भुत साहित्यिक और माननीय रुचि का एक निजी दस्तावेज है। साथ ही साथ भारतीय इतिहास की एक अपूर्व निधि है। इसमें भारत के भूत, वर्तमान और भविष्य का व्यवस्थित सर्वेक्षण किया गया है।

            एनी बेसेन्ट, सन १९२२ में
इस प्रकार कुल मिलाजुला कर करीबन ५०५ ग्रंथों व लेखों की मलिका डॉ. एनी बेसेन्ट ने 'हाऊ इण्डिया रौट् फॉर फ्रीडम' (१९१५) में भारत को अपनी मातृभूमि बतलाया है। 'इण्डिया : ए नेशन' नामक जो पुस्तक जब्त कर ली गयी थी उसमें उन्होंने स्वायत्त-शासन की विचार धारा प्रतिपादित की है। १९१७ में नजरबन्द किये जाने से पहले सत्तर वर्षीय वृद्धा ने अपने भारत के भाइयों और बहनों को आखिरी सन्देश दिया था : मैं वृद्धा हूँ, किन्तु मुझे विश्वास है कि मरने के पहले ही मैं देखूंगी कि भारत को स्वायत्त-शासन मिल गया।
         🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳

🙏🌹 *विनम्र आभिवादन* 🌹🙏

                                                                                                                                                                                                                            
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         🇮🇳 *गाथा बलिदानाच🇮🇳
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     संकलन ~ सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,
              चंद्रपूर, 9403183828
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               *परमवीर चक्र*

           *पुरस्कार माहिती*
प्रकार : युद्ध कालीन वीरता पुरस्कार
वर्ग : राष्ट्रीय बहादुरी
स्थापित : १९५०
प्रथम पुरस्कार वर्ष : १९४७
अंतिम पुरस्कार वर्ष : १९९९
एकूण सन्मानित : २१
सन्मानकर्ते : भारत सरकार
रिबन

प्रथम पुरस्कार विजेते : मेजर सोमनाथ शर्मा (मरणोत्तर)
अंतिम पुरस्कार विजेते : कैप्टन विक्रम बत्रा (मरणोत्तर)
पुरस्कार क्रम : नाही ← परमवीर चक्र → महावीर चक्र
                                          परमवीर चक्र हा भारताचा सर्वोच्य सैन्य पुरस्कार असून युद्धकाळात गाजवलेल्या अतुलनीय कामगिरी बाबत हा पुरस्कार देण्यात येतो. आतापर्यंत २१ परमवीर चक्र पुरस्कार प्रदान करण्यात आले असून त्यातले १४ पुरस्कार हे मरणोत्तर आहेत. एकवीसपैकी वीस पुरस्कार भारतीय सैन्य तर एक वायुसेनेच्या सदस्यांस प्रदान केले गेले आहेत.       
ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट आणि गोरखा रायफल्स या पथकांना प्रत्येकी ३, शीख रेजिमेंट, कुमाऊॅं रेजिमेंट, जम्मू काश्मीर रायफल्स आणि द पूना हॉर्सेस या पथकांना प्रत्येकी २ पुरस्कार दिले गेले. हा पुरस्कार मिळवणाऱ्यांपैकी लेफ्टनंट अर्देशर तारापोर हे सगळ्यात वरच्या पदाचे अधिकारी होते.

शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया कंपनीने १९८३-८५ दरम्यान पंधरा तेलवाहू जहाजे विकत घेतली. यांना त्यावेळच्या १५ परमवीरचक्र विजेत्यांची नावे दिली गेली.
                                                                                 'परमवीर चक्र’ पदक दिसायला अगदी साधे आहे. कांस्य धातूपासून बनवलेले, छोट्या आडव्या दांडीवर सहज फिरेल असे.
गडद जांभळी कापडी पट्टी हे त्याचे वैशिष्ट्य. पदकाच्या दर्शनी बाजूला मधोमध भारताचे राष्ट्रीय बोधचिन्ह आहे. पदकाच्या मागच्या बाजूला परमवीर चक्र हे शब्द इंग्रजी आणि हिंदीत गोलाकार कोरलेले आहेत. त्यांच्या मधे दोन कमलपुष्पे आहेत. ‘परमवीर चक्र’ पदकाचे डिझाइन
सावित्रीबाई खानोलकर यांनी तयार केले. त्या मूळच्या युरोपियन; परंतु भारतीय सेनेतील एक अधिकारी विक्रम खानोलकर यांच्याशी विवाह करून त्या भारतात आल्या. या देशावर त्यांचे प्रचंड प्रेम. त्यांनी भारतीय नागरिकत्व तर घेतलेच, शिवाय भारतातील कला, परंपरांचाही खूप अभ्यास केला. मराठी, संस्कृत, हिंदी या भाषा त्या अस्खलितपणे बोलत असत.
         *परमवीरचक्र विजेते*
🎖️ *१९४८ चे भारत-पाक युद्ध*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *मेजर सोमनाथ शर्मा*              चौथी बटालियन, कुमाऊॅं रेजिमेंट नोव्हेंबर ३, १९४७ बडगाम, काश्मीर
🎖️ *लान्स नायक करम सिंह*              १ बटालियन, शीख रेजिमेंट ऑक्टोबर १३, १९४८ टिथवाल, काश्मीर
🎖️ *नायक यदुनाथ सिंग*            १ बटालियन, राजपूत रेजिमेंट फेब्रुवारी, १९४८ नौशेरा, काश्मीर
🎖️ *सेकंड लेफ्टनंट राम राघोबा राणे*          इंडियन कोर ऑफ इंजिनियर्स एप्रिल ८, १९४८ नौशेरा, काश्मीर
🎖️ *कंपनी हवालदार मेजर पीरू सिंग शेखावत*                                  ६ बटालियन, राजपूताना रायफल्स १७-जुलै १८, १९४८ टिथवाल, काश्मीर
💥 *संयुक्त राष्ट्र शांतिसेनेच्या कारवाया*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *कॅप्टन गुरबचन सिंग* सलारिया ३ बटालियन, १ गुरखा रायफल्स डिसेंबर ५, १९६१ एलिझाबेथ व्हिलेज, काटंगा, कॉंगो, आफ्रिका
💥 *१९६२ चे भारत-चीन युद्ध*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *मेजर धनसिंग थापा*                १ बटालियन, १ गुरखा रायफल्स ऑक्टोबर २०, १९६२ लद्दाख, भारत
🎖️ *सुबेदार जोगिंदर सिंग*                १ बटालियन, शीख रेजिमेंट ऑक्टोबर २३, १९६२ तोंगपेन ला, नॉर्थईस्ट फ्रंटियर एजन्सी, भारत
🎖️ *मेजर शैतान सिंग*                    १३ बटालियन, कुमाऊॅं रेजिमेंट नोव्हेंबर १८, १९६२ रेजांग ला, नॉर्थईस्ट फ्रंटियर एजन्सी, भारत
💥 *१९६५ चे भारत-पाक युद्ध*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *कंपनी क्वार्टर मास्टर अब्दुल हमीद*      ४ बटालियन, बॉम्बे ग्रेनेडियर्स सप्टेंबर १०, १९६५ चीमा, खेमकरण, भारत
🎖️ *लेफ्टनंट कर्नल अर्देशर तारापोर*          द पूना हॉर्सेस ऑक्टोबर १५, १९६५ फिलौरा, सियालकोट, पंजाब, भारत
💥 *भारत-पाकिस्तान तिसरे युद्ध*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *लान्स नायक आल्बर्ट एक्का*          १४ बटालियन, बिहार रेजिमेंट डिसेंबर ३, १९७१ गंगासागर, बोग्रा, बांगलादेश
🎖️ *फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह शेखों*                            १८ स्क्वॉड्रन, भारतीय वायुसेना डिसेंबर १४, १९७१ श्रीनगर, काश्मीर, भारत
🎖️ *लेफ्टनंट अरुण खेतरपाल*      द पूना हॉर्सेस डिसेंबर १६, १९७१ जरपाल, बारापिंड, पाकिस्तान
🎖️ *मेजर होशियार सिंह*              ३ बटालियन बॉम्बे ग्रेनेडियर्स डिसेंबर १७, १९७१ बसंतार, पाकिस्तान
💥 *१९८७ चा सियाचीन संघर्ष*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *नायब सूबेदार बन्ना सिंग*      ८ बटालियन, जम्मू काश्मीर लाइट इन्फंट्री जून २३, १९८७ सियाचिन हिमनदी, भारत
💥 *भारतीय शांतिसेनेच्या कारवाया*
नाव सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *मेजर रामस्वामी परमेश्वरन*    ८ बटालियन, महार रेजिमेंट नोव्हेंबर २५, १९८७ जाफना प्रांत, श्रीलंका
💥 *कारगिल युद्ध*
नाव  सैन्यपथक तारीख युद्धभूमी
🎖️ *लेफ्टनंट मनोज कुमार पांडे*    १ बटालियन, ११ गुरखा रायफल्स जुलै ३, १९९९ जुबेर टाप, बटालिक सेक्टर, काश्मीर, भारत
🎖️ *ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव* १८ बटालियन, द ग्रेनेडियर्स जुलै ४, १९९९ टायगर हिल, कारगिल, काश्मीर, भारत
🎖️ *रायफलमन संजय कुमार*              १३ बटालियन, जम्मू काश्मीर रायफल्स जुलै ५, १९९९ फ्लॅट टॉप, कारगिल, काश्मीर, भारत
🎖️ *कॅप्टन विक्रम बात्रा*                                  १३ बटालियन, जम्मू काश्मीर रायफल्स जुलै ६, १९९९ पॉइंट ५१४०, पॉइंट ४८७५, कारगिल, काश्मीर, भारत                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       
          🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳   
   🙏 *विनम्र अभिवादन*🙏

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