18 ऑक्टोबर दिनविशेष


*18 ऑक्टोबर दिनविशेष 2022 !*
    🧩 *मंगळवार* 🧩


💥 *जागतिक रजोनिवृत्ती दिन*
         
         🌍 *घडामोडी* 🌍    
 
👉 *2002 - कसोटी व एकदिवसीय क्रिकेट सामन्यात वीस हजार धावा करणारा सचिन तेंडुलकर हा पहिला क्रिकेटपटू ठरला*         
👉 *1977 - 2060 चिराॅन हा अंतरिक्षातील सर्वात दूरवरील लघुग्रह शोधण्यात आला*

            🔥🔥🔥🔥
*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर* 
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर) 
9860214288, 9423640394
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


🌍 *जन्म*

👉 *1984 - फ्रीडा पिंटो  - भारतीय अभिनेञी  यांचा जन्म*
👉 *1977 - कुणाल कपूर- भारतीय अभिनेते यांचा जन्म*

        🌍 *मृत्यू*🌍

👉 **2004 - वीरप्पन  - चंदन तस्कर यांचे निधन*
👉 *1995 - ई महमद- छायालेखक  यांचे  निधन*
 
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
   ❂ सुविचार ❂*
━┅━═➖➖➖═━┅━

12. *जो वेळ वाया घालवतो त्याच्याजवळ गमवायलाही काही उरत नाही.*
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
*    ❂ बोधकथा ❂*
━━═➖➖➖➖═━━

  *❃❝ विचारांचा लाभ ❞❃*
     ━━═•➖➖➖•═━━
      एकदा तथागत गौतम बुद्ध एका ठिकाणी धम्म देसना देण्यासाठी गेले.समोर हजारो लोक बसलेले होते,तथागत काहीच न बोलता काही वेळ बसून राहिले व थोड्या वेळाने निघुन गेले. दुसऱ्या दिवशी परत धम्म देसना देण्यासाठी आले समोर पाचशे लोक बसलेले होते. परत तथागत काही वेळ काहीच न बोलता बसून राहिले व थोड्या वेळाने निघुन गेले.
      परत तिसऱ्या दिवशी जेंव्हा ते धम्म देसना देण्या साठी आले तेंव्हा फक्त वीस लोक समोर बसलेले होते,आणि त्या दिवशी तथागतांनी धम्म देसना दिली.
    जेंव्हा त्यांच्या शिष्याने त्यांना विचारले की पहिले दोन दिवस जास्त लोक असतांना तुम्ही धम्म देसना न देता तिसऱ्या दिवशी फक्त
वीस लोक असतांना का दिली?
      तथागतांनी खुप छान उत्तर दिले,"ज्या लोकांना खरच धम्म ऐकायचा होता ते तिसऱ्या दिवसा पर्यन्त आपल्या निश्चयावर ठाम राहिले व तिसऱ्या दिवशी उपस्थित राहिले.परन्तु जे मला फक्त बघण्या साठी आले होते व जे आपल्या निश्चयावर ठाम नव्हते ते अपोआपच कमी होत गेले.मला फक्त धम्म ऐकून घेणारे नकोत तर आचरणात आनणारे अनुयायी हवेत.म्हणून मी तिसऱ्या दिवशी योग्य अशाच अनुयायांना धम्म दिला."

          *🌀❝ तात्पर्य ❞ ::~* 
   जो पर्यन्त चांगल्या विचारांशी एकनिष्ठ राहण्यावर आपण ठाम नसतो तो पर्यन्त आपल्याला त्यापासून मिळणारा लाभ मिळत नाही. किती आहेत यापेक्षा कसे आहेत हे महत्वाचे.
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
* ❂ प्रेरणादायी विचार ❂*
━┅━═➖➖➖═━┅━

12.   *समजदार व्यक्तीसोबत*
*काही मिनीट केलेली चर्चा*
*ही हजारो पुस्तके वाचन्यापेक्षा*
        *श्रेष्ठ आहे...*
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
 *  ❂ सामान्य ज्ञान ❂*
━┅━═➖➖➖═━┅

 *✿ राष्ट्रीय सामान्यज्ञान ✿*
      ➖➖➖➖➖➖
*■ लोकसंख्येच्या बाबतीत भारताचा कितवा क्रमांक लागतो?*
➡  दुसरा

*■ भारतीय शास्त्रीय संगीताच्या दोन प्रमुख पद्धती कोणत्या 
➡ भारतीय संगीत ,कर्नाटकी संगीत

*■ भारताची राजधानी कोणती?*
➡ नवी दिल्ली

*■ भारताचे प्रवेशद्वार कोणते?*
➡   गेट वे ऑफ इंडिया

*■ भारतातील प्रमुख व्यवसाय कोणता?*
➡    शेती
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
* ❂थोरव्यक्ती परिचय ❂*
━━═●➖➖➖●═━━

. *❒ ♦विक्रम साराभाई♦ ❒*  
     ━━═•➖➖➖•═━━
  भारताच्या अंतराळ संशोधनाचे  
    पितामह आणि भारताच्या 
    अंतराळ युगाचे शिल्पकार 
     
    🙏🐾🌷🌹🌷🐾🙏
*●जन्म :~ १२ ऑगस्ट १९१९*
●मृत्यू :~ ३० डिसेंबर १९७१ 
   
  ◆ विक्रम अंबालाल साराभाई ◆
    हे भारतीय भौतिकशास्त्रज्ञ व खगोलशास्त्रज्ञ होते. ते भारताच्या अंतराळ संशोधनाचे पितामह आणि भारताच्या अंतराळ युगाचे शिल्पकार म्हणून ओळखले जातात.

     विक्रम अंबालाल साराभाई यांचा जन्म अमदाबाद येथील एका संपन्न कुटूंबात  झाला. त्यांचे वडील हे एक उद्योगपती होते. त्यांचे बऱ्याच राजकीय व्यक्तिंशी त्यांचे संबध असल्याने रवींद्रनाथ टागोर, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, महात्मा गांधी आदी लोकांचे त्यांच्या घरी जाणे-येणे होते. विक्रम साराभाई यांच्या आई सरलादेवी यांनी आपल्या ८ मुलांच्या शिक्षणासाठी स्वतःची मांटेसरी पद्धतीची शाळा काढली होती. या शाळेतच विक्रम साराभाईचे शिक्षण युरोपातून आलेल्या शिक्षकांद्वारे झाले. त्याना लहानपणापासुनच गणित आणि भौतिकशास्त्र हे विषय विशेष आवडत होते.
      बंगलोरमधील इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ सायन्स मध्ये नोबेल पारितोषिक विजेते सर सी. व्ही. रामन यांच्या मार्गदर्शनाखाली वैश्विक किरणावर संशोधन केले. १९४२ साली त्यांनी भरतनाट्यम, कुचिपुडी या नृत्यकलेत पारंगत असलेल्या प्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई यांच्याशी विवाह केला. त्यांना कार्तिकेय आणि मल्लिका ही दोन अपत्ये झाली.

            *◆ कारकीर्द ◆*
   १९४५ साली दुसरे महायुद्ध संपल्यावर विक्रम साराभाई ब्रिटनला गेले. १९४७ साली त्यानी ‘कास्मिक रे इंवेस्टिगेशन इन ट्रापिकल लैटीट्यूड्स’ वर संशोधन करून डॉक्टरेट मिळवली आणि त्याचवर्षी ते आपल्या मायदेशी परत आले. भारतात परत येउन त्यांनी ११नोव्हेंबर १९४७ ला अहमदाबाद येथे भौतिकी संशोधन कार्यशाळा ची स्थापना केली. हे त्यांचे पहिले पाउल होते, पुढे जाऊन अवकाश संशोधनात विक्रम साराभाई यांनी भरीव कामगिरी केली. विक्रम साराभाई यांनी अहमदाबाद येथील भारतीय प्रबंध संस्था (इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेन्ट) स्थापन करण्यात महत्त्वाची भूमिका बजावली. १९७५ मध्ये जो पहिला अंतरिक्ष उपग्रह आर्यभट्ट अवकाशात सोडला गेला त्याची रचना विक्रम साराभाई यांच्या अहमदाबाद रिसर्च सेंटर मध्येच केली होती. आर्यभट्टच्या यशस्वी प्रक्षेपणानंतर भारताने अनेक उपग्रह अवकाशात प्रक्षेपित केले. या यशामागे साराभाई यांचे अथक परिश्रम, दूरदृष्टी आणि खंबीर नेतृत्व ह्यांचा मोलाचा वाटा आहे.
    विक्रम साराभाई यांनी जागतिक किर्ती असलेल्या अनेक सस्थांची सुरवात केली. इंडियन इन्स्टिट्यूट ऑफ मॅनेजमेन्ट (IIM) ही भारतातील सर्वोत्कृष्ट व्यवस्थापन शिक्षण संस्था डाॅ. साराभाई यांच्या प्रयत्नातुनच उभी राहिली. भौतिकशास्त्रातील संशोधनासाठी प्रसिद्ध असलेल्या राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाळा (PRL) देखिल डाॅ. साराभाई यांनीच सुरू केली. अहमदाबाद येथे वस्त्रोद्योग निर्मितीस चालना देणारे अहमदाबाद टेक्स्टाईल इंडस्ट्रीयल रिसर्च असोसिएशन (ATIRA) या संस्थेची उभारणी त्यांनी केली. पर्यावरण क्षेत्रात कार्यरत असलेली सेंटर फॅार इन्व्हीरॅान्मेंटल प्लॅनिंग ॲन्ड टेक्नॅालॅाजी (CEPT) ही संस्था देखिल त्यांनी उभारली.
               *◆ मृत्यू ◆*
    ३० डिसेंबर १९७१ साली केरळ राज्यातील कोवालम येथे रात्री झोपेतच ह्रदयविकाराच्या झटक्याने विक्रम साराभाई यांचे निधन झाले.
▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂▂
*मिलिंद व्हि वानखेडे*
*मुख्याध्यापक*
*प्रकाश हायस्कूल व ज्युनिअर कॉलेज कान्द्री-माईन*
*9860214288*
➖➖➖➖➖➖➖➖➖
*🇮🇳 आझादी का अमृत महोत्सव 🇮🇳*
➿➿➿➿➿➿➿➿➿
       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
➿➿➿➿➿➿➿➿➿
💥✍️⛓️🇮🇳👨🏻🇮🇳⛓️✍️💥

                 *रामकृष्ण खत्री*
               (भारतीय क्रांतिकारी)

              *जन्म : 3 मार्च 1902*
        (चिखली, बुलढाणा, महाराष्ट्र)
        *मृत्यु : 18 अक्टूबर 1996*
           (लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

पिता : शिवलाल चोपड़ा
माता : कृष्णाबाई
नागरिकता : भारतीय
उपनाम : गोविन्द प्रकाश, नरेन्द्र, गंगाराम
आन्दोलन: भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम
प्रमुख संगठन: हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन
प्रसिद्धि : स्वतंत्रता सेनानी
संबंधित लेख : रामप्रसाद बिस्मिल, काकोरी काण्ड
अन्य जानकारी : रामकृष्ण खत्री हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेज़ी के अच्छे जानकार थे। उन्होंने 'शहीदों की छाया में' शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी, जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी।
               रामकृष्ण खत्री भारत के एक प्रमुख क्रान्तिकारी थे। उन्होंने हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ का विस्तार मध्य भारत और महाराष्ट्र में किया था। उन्हें काकोरी काण्ड में १० वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गयी।
         हिन्दी, मराठी, गुरुमुखी तथा अंग्रेजी के अच्छे जानकार खत्री ने शहीदों की छाया में शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी जो नागपुर से प्रकाशित हुई थी। स्वतन्त्र भारत में उन्होंने भारत सरकार से मिलकर स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों की सहायता के लिये कई योजनायें भी बनवायीं। काकोरी काण्ड की अर्द्धशती पूर्ण होने पर उन्होंने काकोरी शहीद स्मृति के नाम से एक ग्रन्थ भी प्रकाशित किया था। लखनऊ से बीस मील दूर स्थित काकोरी शहीद स्मारक के निर्माण में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

💁🏻‍♂ *संक्षिप्त जीवनी*
              रामकृष्ण खत्री का जन्म ३ मार्च १९०२ को ब्रिटिश राज में वर्तमान महाराष्ट्र के जिला बुलढाना बरार के चिखली गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम शिवलाल चोपड़ा व माँ का नाम कृष्णाबाई था। छात्र जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्याख्यान से प्रभावित होकर उन्होंने साधु समाज को संगठित करने का संकल्प किया और उदासीन मण्डल के नाम से एक संस्था बना ली। इस संस्था में उन्हें महन्त गोविन्द प्रकाश के नाम से लोग जानते थे। क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर उन्होंने स्वेच्छा से हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के संगठन का दायित्व स्वीकार किया। मराठी भाषा के अच्छे जानकार होने के नाते राम प्रसाद 'बिस्मिल' ने उन्हें उत्तर प्रदेश से हटाकर मध्य प्रदेश भेज दिया। व्यवस्था के अनुसार उन्हें संघ का विस्तारक बनाया गया था।
              काकोरी काण्ड के पश्चात् जब पूरे हिन्दुस्तान से गिरफ़्तारियाँ हुईं तो रामकृष्ण खत्री को पूना में पुलिस ने धर दबोचा और लखनऊ जेल में लाकर अन्य क्रान्तिकारियों के साथ उन पर भी मुकदमा चला। तमाम साक्ष्यों के आधार पर उन पर मध्य भारत और महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के विस्तार का आरोप सिद्ध हुआ और उन्हें दस वर्ष की सजा हुई।
                पूरी सजा काटकर जेल से छूटे तो पहले राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबन्ध करने में जुट गये फिर योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया। उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया। काकोरी स्थित काकोरी शहीद स्मारक रामकृष्ण खत्री और प्रेमकृष्ण खन्ना के संयुक्त प्रयासों से ही बन सका।
        १७, १८, १९ दिसम्बर १९७७ को लखनऊ में काकोरी शहीद अर्द्धशताब्दी समारोह, २७, २८ फरबरी १९८१ को इलाहाबाद में शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद बलिदान अर्द्धशताब्दी समारोह तथा २२,२३ मार्च १९८१ को नई दिल्ली में शहीद भगतसिंह सुखदेव राजगुरु के बलिदान के अर्द्धशताब्दी समारोह में रामकृष्ण खत्री की उल्लेखनीय भूमिका रही!
            उनके पाँच पुत्र हुए प्रताप, अरुण, उदय, स्वप्न और आलोक। लखनऊ में कैसरबाग की मशहूर मेंहदी बिल्डिंग के २ नम्बर मकान में अपने तीसरे पुत्र उदय खत्री के साथ उन्होंने अपने जीवन की अन्तिम बेला तक निवास किया। लखनऊ में ही १८ अक्टूबर १९९६ को ९४ वर्ष की आयु में उनका देहावसान हुआ।
        राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने उनके साथी, अशफाकुल्ला खान, ठाकुर रोशनसिंह,सचिंद्रनाथ बख्शी, राम कृष्ण खत्री और 14 अन्य लोगों ने वह गाना लिखा जो स्वतंत्रता युग के सबसे ज्यादा मशहूर गीतों में से एक बन गया उसकी कुछ पंक्तियां इस प्रकार है:
“इसी रंग में रँग के शिवा ने माँ का बन्धन खोला,
यही रंग हल्दीघाटी में था प्रताप ने घोला;
नव बसन्त में भारत के हित वीरों का यह टोला,
किस मस्ती से पहन के निकला यह बासन्ती चोला।
मेरा रँग दे बसन्ती चोला….
हो मेरा रँग दे बसन्ती चोला!”

✍ *लेखन एवं प्रकाशन*
                  रामकृष्ण खत्री ने एक पुस्तक स्वयं लिखी और एक ग्रन्थ का प्रकाशन किया। उन दोनों कृतियों का ब्यौरा इस प्रकार है:
शहीदों की छाया में: लेखक - रामकृष्ण खत्री, विश्वभारती प्रकाशन नागपुर से १९८३ में प्रकाशित हुई। इसका विमोचन १० सितम्बर १९८४ को इन्दिरा गान्धी ने किया।
काकोरी शहीद स्मृति: सम्पादक - डॉ. भगवान दास माहौर। खत्री द्वारा प्रकाशित इस ग्रन्थ का विमोचन १९७८ में नीलम संजीव रेड्डी ने नई दिल्ली में किया।
🪔  *निधन*                                                                                     १८ अक्टूबर १९९६ को ९४ वर्ष की आयु में उनका देहान्त हुआ।                  
            🇮🇳 *जयहिंद* 🇮🇳
                 *वंदे मातरम्...!*
      🙏🌺 *विनम्र अभिवादन*🌺🙏
                                                                                                                                                                                                                                                            ➖➖➖➖➖➖➖➖➖

कोणत्याही टिप्पण्‍या नाहीत:

टिप्पणी पोस्ट करा