*16 नोव्हेंबर दिनविशेष 2022 !*
🧩 *बुधवार* 🧩
💥 *आंतरराष्ट्रीय सहनशीलता दिन*
🌍 *घडामोडी* 🌍
👉 *2000 - कविकुलगुरू कालिदास संस्कृत विद्यापाठातर्फ दिला जाणारा संस्कृत रचना पुरस्कार डाॅ.गजानन बाळकृष्ण पळसूले यांना जाहीर*
👉 *1997 - अनिवासी भारतीया उद्योजक स्वराज पाॅल यांना ब्रिटेनमधील ब्रॅडफोर्ड विद्यापीठाकडून सन्मानिय डाॅक्टरेट प्रदान*
👉 *1945 - युनेस्को (UNESCO) ची स्थापना*
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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर*
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर)
9860214288, 9423640394
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🌍 *जन्म*
👉 *1968 - शोभाजी रेगी - भारतीय राजकारणी यांचा जन्म*
👉 *1973 - पुल्लेल्या गोपीचंद- भारतीय बॅडमिंटनपटू पद्मभूषण, पद्मश्री, ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार यांचा जन्म*
🌍 *मृत्यू*🌍
👉 *1915 विष्णू गणेश पिगळे- गदर पार्टीचे सदस्य व लाहोर कटातील क्रांतिकारक याचे निधन*
👉 *2006 - मिल्टन फ्रीडमन- अमेरिकन अर्थशास्त्रज्ञ नोबेल पारितोषिक यांचे निधन*
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
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*आजच्या बातम्या*
१.मुंबईत गोवरने बाधित एका वर्षाच्या बाळाचा मृत्यू, कस्तुरबा रुग्णालयात सुरू होते उपचार, 26 ऑक्टोबरपासून आतापर्यंत सात संशयित मृत्यू? मुंबईत गोवरचा वाढता प्रादुर्भाव! महापालिका अॅक्शन मोडमध्ये; लसीकरण वाढवण्यासाठी उचलणार 'ही' पावलं मुंबईतील 900 बालके गोवर प्रादुर्भावाची संशयित रुग्ण, महापालिका किती सज्ज?
२. दिल्ली हायकोर्टानं ठाकरे गटाची याचिका फेटाळली, निवडणूक आयोगाला अंतिम निर्णय तातडीनं घेण्याचे आदेश
३. विनयभंग गुन्हा प्रकरणात राष्ट्रवादी काँग्रेसचे आमदार जितेंद्र आव्हाड यांना अटकपूर्व जामीन मंजूर माझ्याविरोधात बदनामीचं षडयंत्र रचलं, यापुढेही अनेक गुन्हे दाखल होतील - जितेंद्र आव्हाड
४. कोणी चुका केल्या असतील तर त्याचं तो निस्तारेल, सरकारला भुर्दंड कशाला? आजी-माजी आमदार - नगरसेवकांच्या वाय प्लस सुरक्षेवरुन अजित पवारांचा संतप्त सवाल 'विनाशकाले विपरीत बुद्धी'! सुप्रिया सुळेंबद्दल गलिच्छ विधान करणाऱ्या सत्तारांना अजित पवारांनी सुनावलं
५. शिवसेनेने 4 जागांसाठी युती तोडली, फडणवीसांचा मोठा दावा, अमित शाहांवरील पुस्तकाचं प्रकाशन
६.अफजलखानाच्या कबरीजवळ कोथळा बाहेर काढत असलेला छत्रपतींचा भव्य पुतळा उभारणार; राज्य सरकारची घोषणा
७. फ्रिजमध्ये लिव्ह-इन पार्टनरचा मृतदेह आणि खोलीत दुसरी तरुणी, श्रद्धा हत्याकांडाची संपूर्ण कहाणी 300 लिटरचा फ्रिज, त्यामध्ये मृतदेहाचे 35 तुकडे; पोलिसांना घटनास्थळी काय-काय सापडलं?
८. सहा महिन्यांनंतर श्रद्धाच्या मृतदेहाचे तुकडे कुजले, तपास करताना फॉरेन्सिक टीमचा कस लागणार श्रद्धाच्या हत्येनंतर आफताब गुगलवर काय सर्च करत होता? पोलिसांनी केला मोठा खुलासा
९. मुंबईकरांच्या लाडक्या पोलार्डचा आयपीएलला अलविदा! भावूक पोस्ट लिहित जाहीर केली
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मिलिंद व्हि वानखेडे
मुख्याध्यापक
प्रकाश हायस्कूल व ज्युनिअर कॉलेज कान्द्री-मईन
9860215288
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*🇮🇳 आझादी का अमृत महोत्सव 🇮🇳*
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🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
▬ ❚❂❚❂❚ ▬ संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,
चंद्रपूर 9403183828
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*करतार सिंग सराभा*
(भारतीय क्रांतिकारी)
*जन्म : 24 मे 1896*
[सराभा गाव, लुधियाना , पंजाब , ब्रिटिश भारत ]
*फांशी : 16 नोव्हेंबर 1915*
(वय 19)
[लाहोर , पंजाब , ब्रिटिश भारत (पाकिस्तान)]
संघटना: गदर पार्टी
प्रसिद्ध : सबसे सक्रिय सदस्य
गदार पार्टी
हालचाल : भारतीय स्वातंत्र्य
संग्राम
सराभा, पंजाब के लुधियाना ज़िले का एक चर्चित गांव है। लुधियाना शहर से यह करीब पंद्रह मील की दूरी पर स्थित है। गांव बसाने वाले रामा व सद्दा दो भाई थे। गांव में तीन पत्तियां हैं-सद्दा पत्ती, रामा पत्ती व अराइयां पत्ती। सराभा गांव करीब तीन सौ वर्ष पुराना है और १९४७ से पहले इसकी आबादी दो हज़ार के करीब थी, जिसमें सात-आठ सौ मुसलमान भी थे। इस समय गांव की आबादी चार हज़ार के करीब है।
कर्तार सिंह का जन्म २४ मई १८९६ को माता साहिब कौर की कोख से हुआ। उनके पिता मंगल सिंह का कर्तार सिंह के बचपन में ही निधन हो गया था। कर्तार सिंह की एक छोटी बहन धन्न कौर भी थी। दोनों बहन-भाइयों का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया। कर्तार सिंह के तीन चाचा-बिशन सिंह, वीर सिंह व बख्शीश सिंह ऊंची सरकारी पदवियों पर काम कर रहे थे। कर्तार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूलों में हासिल की। बाद में उसे उड़ीसा में अपने चाचा के पास जाना पड़ा। उड़ीसा उन दिनों बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जो राजनीतिक रूप से अधिक सचेत था। वहां के माहौल में सराभा ने स्कूली शिक्षा के साथ अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना भी शुरू किया। दसवीं कक्षा पास करने के उपरांत उसके परिवार ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उसे अमेरिका भेजने का निर्णय लिया और १ जनवरी १९१२ को सराभा ने अमेरिका की धरती पर पांव रखा। उस समय उसकी आयु पंद्रह वर्ष से कुछ महीने ही अधिक थी। इस उम्र में सराभा ने उड़ीसा के रेवनशा कॉलेज से ग्यारहवीं की परीक्षा पास कर ली थी। सराभा गांव का रुलिया सिंह 1908 में ही अमेरिका पहुंच गया था और अमेरिका-प्रवास के प्रारंभिक दिनों में सराभा अपने गांव के रुलिया सिंह के पास ही रहा।
🙋🏻♂ *क्रांतिकारी बनने का सफ़र*
बर्कले विश्वविद्यालय में तकरीबन 30 विद्यार्थी भारतीय थे, जिनमें से अधिकतर बंगाली और पंजाबी थे. 1913 में लाला हरदयाल जी इन विद्यार्थियों के संपर्क में आये और इन्हें अपने विचारों से दो-चार कराया. लाला हरदयाल और भाई परमानंद ने भारत की ग़ुलामी पर एक जोशीला भाषण दिया. जिसने करतार सिंह की सोच पर गहरा असर किया. और वो भारत की आज़ादी के बारे में विस्तार और गहराई से सोचने लगे.
🤝 *लाला हरदयाल का साथ*
1911 ई. में सराभा अपने कुछ सम्बन्धियों के साथ अमेरिका चले गये। वे 1912 में सेन फ़्राँसिस्को पहुँचे। वहाँ पर एक अमेरिकन अधिकारी ने उनसे पूछा "तुम यहाँ क्यों आये हो?" सराभा ने उत्तर देते हुए कहा, "मैं उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से आया हूँ।" किन्तु सराभा उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। वे हवाई जहाज बनाना एवं चलाना सीखना चाहते थे। अत: इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु एक कारखाने में भरती हो गये। इसी समय उनका सम्पर्क लाला हरदयाल से हुआ, जो अमेरिका में रहते हुए भी भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्नशील दिखे। उन्होंने सेन फ़्राँसिस्को में रहकर कई स्थानों का दौरा किया और भाषण दिये। सराभा हमेशा उनके साथ रहते थे और प्रत्येक कार्य में उन्हें सहयोग देते थे।
🔮 *साहस की प्रतिमूर्ति*
करतार सिंह सराभा साहस की प्रतिमूर्ति थे। देश की आज़ादी से सम्बन्धित किसी भी कार्य में वे हमेशा आगे रहते थे। 25 मार्च, 1913 ई. में ओरेगन प्रान्त में भारतीयों की एक बहुत बड़ी सभा हुई, जिसके मुख्य वक्ता लाला हरदयाल थे। उन्होंने सभा में भाषण देते हुए कहा था, "मुझे ऐसे युवकों की आवश्यकता है, जो भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण दे सकें।" इस पर सर्वप्रथम करतार सिंह सराभा ने उठकर अपने आपको प्रस्तुत किया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच लाला हरदयाल ने सराभा को अपने गले से लगा लिया।
📝 *सम्पादन कार्य*
इसी सभा में 'गदर' नाम से एक समाचार पत्र निकालने का निश्चय किया गया, जो भारत की स्वतंत्रता का प्रचार करे। इसे कई भाषाओं में प्रकाशित किया जाये और जिन-जिन देशों में भारतवासी रहते हैं, उन सभी में इसे भेजा जाये। फलत: 1913 ई. में 'गदर' प्रकाशित हुआ। इसके पंजाबी संस्करण के सम्पादक का कार्य सराभा ही करते थे।
🔴 *क्रांतिकारियों के साथ चलती है क्रांति*
पंजाब में विद्रोह चलाने के दौरान उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ नज़दीकी बढ़ानी शुरू की. भारत के गुलाम हालातों पर उनकी पैनी नज़र स्पष्ट विचारों का निर्माण कर रही थी. राजबिहारी बोस, शचीन्द्रनाथ सान्याल के साथ अपने विचार साझे किए और क्रांतिकारियों की एक सेना बनाने का सुझाव दिया. बाद में रासबिहारी बोस ने अपने आस-पास के माहौल को देखते हुए करतार सिंह को लाहौर छोड़कर काबुल चले जाने की सलाह दी. उन्होंने काबुल जाने की तय कर ली लेकिन वज़ीराबाद तक पहुंचते-पहुंचते उन्होंने सोचा कि भागने से बेहतर है मैं फांसी के तख़्ते पर चढ़ जाऊं. इसी सोच को अंजाम देते हुए स्वयं जा कर ख़ुद को पुलिस के हवाले कर दिया. बाद में उन पर कई मुकदमें चले. जिसके परिणाम स्वरूप जज ने उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई.
🌀 *अंतिम समय भी दिया संदेश*
शहीद होने से पहले इन्होंने कहा था कि 'अगर कोई पुर्नजन्म का सिद्धांत है तो मैं भगवान से यही प्रार्थना करूंगा कि जब तक मेरा देश आज़ाद न हो मैं भारत की स्वतंत्रता में अपना जीवन न्यौछावर करता रहूं'. 16 नवंबर 1915 को करतार सिंह ने मात्र 19 साल की उम्र में हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया.
📶 *सराभा की लोकप्रिय गज़ल*
करतार सिंह सराभा की यह गज़ल भगत सिंह को बेहद प्रिय थी वे इसे अपने पास हमेशा रखते थे और अकेले में अक्सर गुनगुनाया करते थे:
"यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,
मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा;
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,
यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा;
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,
यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा;
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!
कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा;
तेरी खिदमत में अय भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,
तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा."
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