3 डिसेंबर दिनविशेष


*03 डिसेंबर दिनविशेष 2022 !*
  🧩 *शनिवार* 🧩


💥 *अपंग दिन*
         
         🌍 *घडामोडी* 🌍    
 
👉 *2008 ला झालेल्या आतंकवादी हल्लानंतर आजच्या दिवशी विलासराव देशमुख यांनी मुख्यमंत्री पदाचा राजीनामा दिला होता*        
👉 *2015 - सुगम्य भारत अभियान*

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*विदर्भ प्राथमिक शिक्षक संघ नागपूर* 
(प्राथमिक, माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षक संघ नागपूर विभाग नागपूर) 
9860214288, 9423640394
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🌍 *जन्म*

👉 *1903 - प्रसिद्ध लेखक यशपाल  यांचा जन्म*
👉 *1892 - माधव केशव काटदरे  - निसर्गकवी यांचा जन्म*

        🌍 *मृत्यू*🌍

👉 *1989 - भारतीय हाॅकीपटू मेजर ध्यानचंद  याचे निधन*
👉 *2011 - देव आनंद  - चित्रपट अभिनेता व निर्माता   यांचे  निधन*
 
🙏 *मिलिंद विठ्ठलराव वानखेडे*🙏
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          *🥇सामान्य ज्ञान 🥇*
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*👉कोणता प्राणी वाळवंटातील जहाज म्हणून ओळखला जातो?*
 *🥇उंट*

*👉पृथ्वीवरील ऊर्जेचा मुख्य स्रोत कोणता आहे?* 
*🥇सूर्य*

*👉मानवी शरीरात किती फुफ्फुस असतात?* 
*🥇दोन फुफ्फुस* 

*👉पृथ्वीवरील सर्वात थंड स्थान कोणते आहे?*  
*🥇पूर्व अंटार्क्टिका*

*👉पाच प्रकारच्या बाजूंच्या आकारास काय म्हटले जाते?* 
*🥇पंचकोन*
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           *🕸 बोधकथा 🕸*
     
*👤स्वताला नियंत्रित ठेवण्याची कला*

*एक जिज्ञासूवृत्तीचा मुलगा होता. तो कोणतीही नवी गोष्ट शिकण्यास तयार होत असे.*

*त्याने धनुष्यबाण कसे तयार करतात हे शिकून घेतले. नाव बनवणर्‍यांकडून नाव, घराचे बांधकाम, बासरी बनविणे इ. प्रकारात तो निपुण झाला. परंतु त्याच्यात अहंकार आला, तो आपल्या मित्रांना सांगत असे. या जगात माझ्याइतका प्रतिभावंत अन्य कोणी नसेल.*

*एकदा या शहरात बुद्धांचे आगमन झाले. त्यांनी जेव्हा या मुलाची कला आणि अहंकाराबाबत ऐकले. तेव्हा त्यांना वाटले, या मुलाकडून आपण अशी कला शिकून घ्यावी जी आतापर्यंतच्या कलांमध्ये श्रेष्ठ असेल. ते भिक्षापात्र घेऊन त्याच्याकडे गेले.*

*मुलाने विचारले, तुम्ही कोण आहात?*

*बुद्ध म्हणाले, मी शरीरावर नियंत्रण ठेवणारा माणूस आहे.*

*मुलाने यावर त्यांना खुलासा विचारला असता बुद्ध म्हणाले, जो धनुष्यबाण वापरतो त्याला त्याचा वापर माहित असतो, जो नाव हाकतो, जो घराचे बांधकाम करतो त्याला ते काम माहित असते. पण जो ज्ञानी आहे तो स्वत:वर नियंत्रण ठेवतो.*

*मुलाने विचारले, ते कसे काय?*

*बुद्ध म्हणाले, त्याची जर कोणी प्रशंसा केली तर अभिमानाने ताठ होत नाही तसेच निंदा केली तरी तो शांत राहतो, अशी व्यक्ती नेहमी आनंदी असते.*

*मुलाला जाणीव झाली की सर्वात मोठे कौशल्य तर स्वत:ला नियंत्रणात ठेवण्याचे असते. त्याला त्याची चूक कळून आली.*
 
*🧠तात्पर्य :-*
*ज्यांना स्वत:ला नियंत्रणात ठेवता येते त्याला समभाव ठेवता येतो. हाच समभाव अनुकूल आणि प्रतिकूल परिस्थितीत आपल्याला आनंदी ठेवतो.*
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         *🌐 आजच्या बातम्या 🌐*

*📢MPSCचं सुपरफास्ट काम! PSI पदांच्या शारीरिक चाचणीनंतर चारच तासात निवड यादी जाहीर* 
*📢राज्यात गोवरचा उद्रेक, 11 सदस्यीय टास्क फोर्सची स्थापना होणार* 
*📢आरोग्य मंत्री तानाजी सावंत यांच्या उस्मानाबाद जिल्ह्यातील शासकीय रुग्णालयात औषधांचा तुटवडा, मंत्री भारती पवार यांच्याकडून पोलखोल*  
*📢राज्यभरात ग्रामपंचायत निवडणुकीसाठी अर्ज दाखल, वेळ संपल्यानंतरही अनेक ठिकाणी उमेदवारांची गर्दी* 
*📢सुवर्णनगरी जळगावमध्ये सोन्याच्या दरात उच्चांकी वाढ; जीएसटीसह सोन्याचा दर 55 हजारांच्या पुढे* 
*📢महाराष्ट्राचं विजय हजारे ट्रॉफी जिंकण्याचं स्वप्न भंगलं; सौराष्ट्राने दुसऱ्यांदा ट्रॉफी जिंकली!*
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*🇮🇳 आझादी का अमृत महोत्सव 🇮🇳*
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       🇮🇳 *गाथा बलिदानाची* 🇮🇳
                 ▬ ❚❂❚❂❚ ▬                  संकलन : सुनिल हटवार ब्रम्हपुरी,          
             चंद्रपूर 9403183828                                                      
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         *बाल शहीद खुदीराम बोस*
   (भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी)

     *जन्म : ३ दिसंबर १८८९*
   (बहुवैनी, मिदनापूर, प. बंगाल)

    *फांशी : ११ अगस्त १९०८*
            (मुजफ्फरपूर जेल)

             युवा क्रान्तिकारी खुदीराम बोस  भारतीय स्वाधीनता के लिये मात्र १९ साल की उम्र में भारतवर्ष की आजादी के लिये फाँसी पर चढ़ गये। कुछ इतिहासकारों की यह धारणा है कि वे अपने देश के लिये फाँसी पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के ज्वलन्त तथा युवा क्रान्तिकारी देशभक्त थे। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि खुदीराम से पूर्व १७ जनवरी १८७२ को ६८ कूकाओं के सार्वजनिक नरसंहार के समय १३ वर्ष का एक बालक भी शहीद हुआ था। उपलब्ध तथ्यानुसार उस बालक को, जिसका नम्बर ५०वाँ था, जैसे ही तोप के सामने लाया गया, उसने लुधियाना के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर कावन की दाढी कसकर पकड ली और तब तक नहीं छोडी जब तक उसके दोनों हाथ तलवार से काट नहीं दिये गये बाद में उसे उसी तलवार से मौत के घाट उतार दिया गया था। 

💁‍♂ *जन्म व प्रारम्भिक जीवन*
                   खुदीराम का जन्म ३ दिसंबर १८८९ को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गाँव में बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस के यहाँ हुआ था। उनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बालक खुदीराम के मन में देश को आजाद कराने की ऐसी लगन लगी कि नौवीं कक्षा के बाद ही पढ़ाई छोड़ दी और स्वदेशी आन्दोलन में कूद पड़े। छात्र जीवन से ही ऐसी लगन मन में लिये इस नौजवान ने हिन्दुस्तान पर अत्याचारी सत्ता चलाने वाले ब्रिटिश साम्राज्य को ध्वस्त करने के संकल्प में अलौकिक धैर्य का परिचय देते हुए पहला बम फेंका और मात्र १९ वें वर्ष में हाथ में भगवद गीता लेकर हँसते - हँसते फाँसी के फन्दे पर चढकर इतिहास रच दिया।

♻ *क्रान्ति के क्षेत्र में*
                    स्कूल छोड़ने के बाद खुदीराम रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने और वन्दे मातरम् पैफलेट वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। १९०५ में बंगाल के विभाजन (बंग-भंग) के विरोध में चलाये गये आन्दोलन में उन्होंने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया।

⚛ *राजद्रोह के आरोप से मुक्ति*
       फरवरी १९०६ में मिदनापुर में एक औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी हुई थी। प्रदर्शनी देखने के लिये आसपास के प्रान्तों से सैंकडों लोग आने लगे। बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियाँ खुदीरामने इस प्रदर्शनी में बाँटी। एक पुलिस वाला उन्हें पकडने के लिये भागा। खुदीराम ने इस सिपाही के मुँह पर घूँसा मारा और शेष पत्रक बगल में दबाकर भाग गये। इस प्रकरण में राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया परन्तु गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष छूट गये।
                    इतिहासवेत्ता मालती मलिक के अनुसार २८ फरवरी १९०६ को खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिये गये लेकिन वह कैद से भाग निकले। लगभग दो महीने बाद अप्रैल में वह फिर से पकड़े गये। १६ मई १९०६ को उन्हें रिहा कर दिया गया।
                   ६ दिसंबर १९०७ को खुदीराम ने नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर बंगाल के गवर्नर की विशेष ट्रेन पर हमला किया परन्तु गवर्नर बच गया। सन १९०८ में उन्होंने दो अंग्रेज अधिकारियों वाट्सन और पैम्फायल्ट फुलर पर बम से हमला किया लेकिन वे भी बच निकले।

☣ *न्यायाधीश किंग्जफोर्ड को मारने की योजना*
            मिदनापुर में ‘युगांतर’ नाम की क्रांतिकारियों की गुप्त संस्था के माध्यम से खुदीराम क्रांतिकार्य पहले ही में जुट चुके थे। १९०५ में लॉर्ड कर्जन ने जब बंगाल का विभाजन किया तो उसके विरोध में सडकों पर उतरे अनेकों भारतीयों को उस समय के कलकत्ता के मॅजिस्ट्रेट किंग्जफोर्ड ने क्रूर दण्ड दिया। अन्य मामलों में भी उसने क्रान्तिकारियों को बहुत कष्ट दिया था। इसके परिणामस्वरूप किंग्जफोर्ड को पदोन्नति देकर मुजफ्फरपुर में सत्र न्यायाधीश के पद पर भेजा। ‘युगान्तर’ समिति कि एक गुप्त बैठक में किंग्जफोर्ड को ही मारने का निश्चय हुआ। इस कार्य हेतु खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार चाकी का चयन किया गया। खुदीराम को एक बम और पिस्तौल दी गयी। प्रफुल्लकुमार को भी एक पिस्तौल दी गयी। मुजफ्फरपुर में आने पर इन दोनों ने सबसे पहले किंग्जफोर्ड के बँगले की निगरानी की। उन्होंने उसकी बग्घी तथा उसके घोडे का रंग देख लिया। खुदीराम तो किंग्जफोर्ड को उसके कार्यालय में जाकर ठीक से देख भी आए

 💣 *अंग्रेज अत्याचारियों पर पहला बम*
               ३० अप्रैल १९०८ को ये दोनों नियोजित काम के लिये बाहर निकले और किंग्जफोर्ड के बँगले के बाहर घोडागाडी से उसके आने की राह देखने लगे। बँगले की निगरानी हेतु वहाँ मौजूद पुलिस के गुप्तचरों ने उन्हें हटाना भी चाहा परन्तु वे दोनाँ उन्हें योग्य उत्तर देकर वहीं रुके रहे। रात में साढे आठ बजे के आसपास क्लब से किंग्जफोर्ड की बग्घी के समान दिखने वाली गाडी आते हुए देखकर खुदीराम गाडी के पीछे भागने लगे। रास्ते में बहुत ही अँधेरा था। गाडी किंग्जफोर्ड के बँगले के सामने आते ही खुदीराम ने अँधेरे में ही आगे वाली बग्घी पर निशाना लगाकर जोर से बम फेंका। हिन्दुस्तान में इस पहले बम विस्फोट की आवाज उस रात तीन मील तक सुनाई दी और कुछ दिनों बाद तो उसकी आवाज इंग्लैंड तथा योरोप में भी सुनी गयी जब वहाँ इस घटना की खबर ने तहलका मचा दिया। यूँ तो खुदीराम ने किंग्जफोर्ड की गाडी समझकर बम फेंका था परन्तु उस दिन किंग्जफोर्ड थोडी देर से क्लब से बाहर आने के कारण बच गया। दैवयोग से गाडियाँ एक जैसी होने के कारण दो यूरोपियन स्त्रियों को अपने प्राण गँवाने पडे। खुदीराम तथा प्रफुल्लकुमार दोनों ही रातों - रात नंगे पैर भागते हुए गये और २४ मील दूर स्थित वैनी रेलवे स्टेशन पर जाकर ही विश्राम किया।
 
⛓️ *गिरफ्तारी*
              अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी और वैनी रेलवे स्टेशन पर उन्हें घेर लिया। अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल्लकुमार चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी शहादत दे दी जबकि खुदीराम पकड़े गये। ११ अगस्त १९०८ को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फाँसी दे दी गयी। उस समय उनकी उम्र मात्र १८+ साल थी।
 
📿 *फाँसी का आलिंगन*
                   दूसरे दिन सन्देह होने पर प्रफुल्लकुमार चाकी को पुलिस पकडने गयी, तब उन्होंने स्वयं पर गोली चलाकर अपने प्राणार्पण कर दिये। खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था। ११ अगस्त १९०८ को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी - खुशी फाँसी चढ गये। किंग्जफोर्ड ने घबराकर नौकरी छोड दी और जिन क्रांतिकारियों को उसने कष्ट दिया था उनके भय से उसकी शीघ्र ही मौत भी हो गयी।
                फाँसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कालेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

🗽 *स्मारक का उद्घाटन*
                     क्रान्तिवीर खुदीराम बोस का स्मारक बनाने की योजना कानपुर के युवकों ने बनाई और उनके पीछे असंख्य युवक इस स्वतन्त्रता-यज्ञ में आत्मार्पण करने के लिये आगे आये। इस प्रकार के अनेक क्रान्तिकारियों के त्याग की कोई सीमा नहीं थी।

🔮 *लोकप्रियता*
                    मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फाँसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह निर्भीक होकर फाँसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18+ वर्ष थी। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक ख़ास किस्म की धोती बुनने लगे।
      उनकी शहादत से समूचे देश में देशभक्ति की लहर उमड़ पड़ी थी। उनके साहसिक योगदान को अमर करने के लिए गीत रचे गए और उनका बलिदान लोकगीतों के रूप में मुखरित हुआ। उनके सम्मान में भावपूर्ण गीतों की रचना हुई जिन्हें बंगाल के लोक गायक आज भी                                                                                                                                                                                           ➖➖➖➖➖➖➖➖➖

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